Sunday, October 27, 2019

तूफान चाहिए।

मुझे नहीं कुछ आसान चाहिए
ला सके तो ला, तूफान चाहिए।
हौंसला देख ठहर जाएगा तू
मैं परवाज़ हूँ, आसमान चाहिए।
इन गीदड़-भभकियों से डरता है कौन
शेर हूँ मुझे बस दहाड़ चाहिए।
मिलूँगा निहत्था तुझसे, गुरुर है
जो तोड़ सके १०० तलवार चाहिए।
चित्र - गूगल आभार

भीतर जो मेरे है क्या बताऊँ
मुझे तेरे अंदर थोड़ा पानी चाहिए।
जबीं पर पड़ी सिलवटें, ईमान बोलते हैं
तुझे रास न आएगी, लिख ले, स्याही चाहिए।
शादाब है अब भी कोहसार मेरा
तल्खियाँ नहीं, ख़ारज़ारों की सौगात चाहिए।
तेरी मक्कारियों को नज़रअंदाज़ करते हैं
थोड़े सभ्य हैं, वरना तुझे औकात चाहिए।
असरार मेरे जुनून का तुझे क्या बताऊँ
मैं पानी हूँ, मुझे बस बहाव चाहिए।
©युगेश

परवाज़ - उड़नेवाला
जबीं - ललाट
शादाब - हरा-भरा
कोहसार - पहाड़
ख़ारज़ारों - काँटों भारी ज़मीन
असरार - राज़

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Sunday, September 22, 2019

अपनी ऊँगलियों से जुल्फों को

चित्र - गूगल आभार
अपनी ऊँगलियों से जुल्फों को
कान के पीछे सहेज कर रखा कुछ यूँ
साँसे थाम कर दिल ने कहा
भला,ऐसा भी कोई करता है क्यूँ
जन्नत देखी नहीं पर लगता है मुझको
वहाँ नाज़नीं भी होगी तो होगी कुछ यूँ
गुस्ताख़ी माफ कर देना हमारी
मज़बूर है,इश्क़ की फिदरत आखिर होती है यूँ
जो छनकी पायल दिल भी धड़का
तालमेल हमने भी उनसे जोड़ लिया कुछ यूँ
आँखें देखना चाहती हैं बस तुझको
पलकों को अदायगी से जब गिराती हो यूँ
जितना भी दीदार करूँ,प्यास बुझती कहाँ है
मोहब्बत में सुना है गला सूखता है यूँ
©Yugesh
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Monday, September 2, 2019

रेत सा जो टिकता है कोई

रेत सा जो टिकता है कोई
घाव ये गहरा है कोई
गम समेटे जो हम खड़े हैं
ये मुस्कान देख हँसता है कोई।
चित्र - गूगल आभार 
भोर घर से जब निकलता
बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई
छूट जाए सपने तो क्या
न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई।
चेहरे से सिकन को फेंकता
माथे से पसीना जैसे पोंछता है कोई
कहता है बहुत खुश हूँ
क्या खूब झूठ कहता है कोई।
मुफ़लिसी न उसकी कोई देख पाता
खुद्दार है वो ये कहता है कोई
मांड को जब दूध बताकर
जब शौक से पीता है कोई।
ठोकर पड़े जब सपनों की गठरी को
गाँठ और ऐंठता है कोई
तिल तिल कर वो जी रहा है
जब तिल तिल कर मरता है कोई।
भार शौक से उनके सपनों का सर पर
अपने सपनों की दुनिया तजता है कोई
सुना है वो मुस्कुरातें हैं देख उसको
सो अपने चेहरे पर मुस्कान रखता है कोई।
©युगेश
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Sunday, August 18, 2019

तुम होते तो

तुम होते तो
न होती ये रात
चित्र - गूगल आभार 
तन्हाई वाली
न होता ये बवंडर
मेरे अंदर
जो कचोटता है मुझे
फिर, जब उफ़न कर
शान्त होता है
और धीरे से
मेरे दिल की कुंडी
खोल देता है
उसे लगता है
तुम वापस आओगे
पर उसे क्या मालूम
कि मैंने दिल की चौखट
में कोई डेरा
कभी नहीं डाला
जो था तुम्हें सौंप दिया था
"मेरी आत्मा"
अब कोई क्या ले जाएगा
तुम्हें मालूम हो जाता
जो तुम होते तो।
©युगेश
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Saturday, August 17, 2019

चूहे की व्यथा(व्यंग्य)

एक घर में एक चूहा और एक आदमी रहता है, ज्यादा समान खा जाने की वजह से वो आदमी उसे घर से निकाल देता है। चूहे की ओर से उसके विचार।ध्यान रहे सभी पात्र और घटनाएँ काल्पनिक हैं।:-

चित्र - गूगल आभार 

      करीब एक साल का रिश्ता था हमारा।बड़े प्यार से वो मुझ पर हाथ फेरा करता था।मेरी चूँ चूँ में उसे शहनाई की आवाज़ सुनाई देती थी।पर आज वो शहनाई मानो टूटा हुआ तम्बूरा हो गया था।मेरे सुरीले स्वर की अब वो कद्र ही नहीं थी।खैर सुना था वह अब अपनी पत्नी की भी उतनी लल्लो-चप्पो नहीं करता।अब,इंसान की प्रवृत्ति ही ऐसी है।पर दिल तो मेरा तब टूटा जब मैं अपनी मधुर आवाज में गा रहा था"मेरा जीवन कोरा कागज़,कोरा ही रह गया।"
और तंज कसते हुए उसने गाया"सारा चावल चूहा खा गया,बोरा ही रह गया"
        भला किसी के खाने पर भी ऐसे कोई नज़र लगाता है।उसके बाद से मैंने अपने अंदर के सोनू निगम को गंजा तो नहीं पर गूंगा जरूर कर दिया।मेरा तनिक खाना उसे दिखता था पर अपनी कभी न लौट कर वापस आने वाली तोंद नहीं।इंसान की ये दूसरी बुरी आदत है कि उसे अपनी त्रुटियाँ नहीं दिखती।अब क्या करें।पर मुझसे भी गलती हुई जहाँ अपमान हो वहाँ नहीं रहना चाहिए।उसे मुझे निकालने से पहले मुझे ही निकल जाना चाइये था।खैर,गलतियाँ सबसे होती हैं,अब अखिलेश यादव को ही देख लो बुआ ने अपना बना कर बेगाना कर दिया।वैसे उदाहरण तो बहुत हैं पर मैं UP से हूं तो वहीं का उदाहरण सही लगा।पर मुझे ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है।नवीनीकरण और तकनीक ने इंसान को जितना आरामतलब और फरमाइशी बनाया है उतना हम चूहों को नहीं।हम तो आज भी सादा जीवन जीते हैं।कही भी रह लिया,कुछ भी खा लिया।कोई नुक्ताचीनी नहीं।मैंने बगल में ही सुरंग बनाई है।दिल टूटा है पर हाँ मैं हिसाब जरूर बराबर करूँगा।मुझे पता है वो इलाईची कहाँ रखता है।अब उसके चाय में वो इलाईची वाली खुशबू नहीं आएगी इसका उसे अंदाज़ा हो जाएगा।
©युगेश

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Tuesday, August 13, 2019

*सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान की राय*

मियां!सुना है जनाब मोदी ने
कश्मीर के आवाम के साथ धोखा किया है
छोड़ो मियां कौन सी पहली दफा किया है
याद है वो 'सर्जिकल स्ट्राइक'
पूरी दुनिया को गुमराह कर डाला
लगे हाथ चुनाव भी जीत डाला
ला हौल वा ला कुव्वता इल्ला बी अल्ला
चित्र - गूगल आभार 
बिल्कुल पते की बात की है
अरे!हमारे पुराने वज़ीरे आज़म 'नवाज़ शरीफ'
जिनकी 'शराफत' पर थोड़ी दाग लगी है
अरे!क्या बात करते हो मियां
बदनाम हुआ तो क्या हुआ,नाम तो हुआ
मसखरी न करो मियां
क्या गज़ब विरोध किया था
अरे!1-2 km भीतर घुस आए 
और कहते हैं 'सर्जिकल स्ट्राइक'
जनाब अगली बार 70-80 km घुस आए थे
गद्दार है तू,काफ़िर कहीं का
जनाब आप भारत के भक्तों जैसे न करो
लेकिन जो भी हुआ गलत हुआ
आवाम सकते में है
अरे!कुछ नहीं हुआ
हमारे किसी भी वज़ीरे आज़म ने कुछ बोला
वैसे बात सही कही मियां
इमरान साब ने अमेरिका में भी कुछ नहीं बोला
बस बेज्जती झेल ली
उल्लू दे पट्ठे!इसे गम खाना कहते हैं
जैसे नवाज़ शरीफ ने अपने सर पर घाटी बसा ली
वैसे ही इमरान साब घाटी के लिए मदद माँगने गए थे
थोड़ा झुकना पड़ता है बिरादर
मियां,पहले यहाँ सुधार ले फिर घाटी का सोचते 
थोड़ी पढ़ाई कर ली तूने,पर बच्चा है तू
थोड़े दिन में समझदारी आ जायेगी तुझे
अल्लाह की तमन्ना है ये
अब किसकी क्या तमन्ना है खुदा जाने
ये मियां काफी देर से चुप बैठे हैं
मियां,आप भी 'सर्जिकल स्ट्राइक' पर कुछ बोलो
भाईजान! मैं घाटी से ही हूँ
इसीलिए तब से चुप हूँ।
©युगेश

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Tuesday, April 30, 2019

अवसाद

"अवसाद" एक ऐसा शब्द जिससे हम सब वाकिफ़ हैं।बस वाकिफ़ नहीं है तो उसके होने से।एक बच्चा जब अपनी माँ-बाप की इच्छाओं के तले दबता है तो न ही इच्छाएँ रह जाती हैं ना ही बचपना।क्योंकि बचपना दुबक जाता है इन बड़ी मंज़िलों के भार तले जो उसे कुछ खास रास नहीं आते।मंज़िल उसे भी पसंद है पर रास्ते पर वो आराम से चलना चाहता है नंगे पैर ताकि गुदगुदी महसूस कर सके घाँस की अपने पैरों तले न कि भागे और कंकड़ उसके पैरों तले आ जाएँ।वह जताता है पर हम समझ नहीं पाते।वो गुदगुदाने वाली घाँस अब मिलती नहीं राहों पर,या वो राह बदल लेता है काँटों वाली जिसकी टिस बस उसे ही होती है।

चित्र - गूगल आभार 
तुमने दिन से उजाले
चुराने शुरू किए
पहले शाम हुई
और धीरे-धीरे रात हो गई
पूछा सबने, बस
जानने की कोशिश न की
अपेक्षाओं के बादल ने
उसे ऐसा ढका था
फिर भी कोशिश की सूरज ने
नन्हें हाथ पैर फैलाने लगा
दब कर इच्छाओं से उबलने लगा
वो गोला बनता आग का
कि बादल आ बैठे
बरस कर उस पर
उसे बुझा बैठे
आज जो बुझा बैठा है
बादल पूछते हैं
पर बेवजह बरसने की
वजह उन्होंने
अब तक नहीं बताई।
©युगेश
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