Tuesday, May 29, 2018

धीरे धीरे जो सुलगी

धीरे धीरे जो सुलगी वो आग हो गई
 चित्र - गूगल आभार 
हमने लिखने को जो उठाई कलम
वो आज किताब हो गयी
उनके जुल्फों की खुशबू में हम यूँ बहके
की जो अब तक न चढ़ी आज शराब हो गई।
आज आबशार जो देखा मैंने नदी के किनारे
उनकी जुल्फों से रिस कर रुकसार पर आते हुए
जुस्तजू का आलम ये हुआ
की खुदा से आज बगावत हो गयी
क्या कहूँ बस तब से उनकी इबादत हो गई।
कई बार उनकी मुस्कराहट के बारे में सोचा
जब भी सोचा चेहरे पर मुस्कान आ गयी
तारीफ़ करना हमने सीखा नहीं
दीदार-e-पाक क्या हुआ पन्नो पर स्याही आ गयी
वाह-वाही अपने ग़ज़लों की हमने पहले न सुनी
जिक्र जो उनका हुआ
अल्फ़ाज़ों में ताकत करिश्माई आ गयी।
©युगेश
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Sunday, May 20, 2018

सवाल कुछ यूँ भी हैं जिंदगानी में

सवाल कुछ यूँ भी हैं जिंदगानी में
कि अश्क हैं भी और गिरते भी नहीं।
चित्र-गूगल आभार 
शरीर टूटता है उन कामगार बच्चों का
एक आत्मा थी जो टूटी है पर टूटती भी नहीं।
उस बच्ची का पुराना खिलौना
आज मैंने कचरा चुनने वाली बच्ची के पास देखा
पता है खिलौना टूटा है,पर इतना टूटा भी नहीं।
ठगे जाते हैं लोग अक्सर सत्ता-धारियों से
बौखलाहट है,पर शायद उतनी भी नहीं।
बड़ा आसान देखा है मैंने आरोप लगाना
कमिया कुछ मुझमें भी होंगी,गलती बस उसी की नहीं।
पिता को मैंने हमेशा थोड़ा कठोर सा देखा है
कभी जो अंदर झाँक के देखा,शायद इतने भी नहीं।
गुबार है गर दिल में तो निकल जाने दो
दर्द जो होगा तो एक बार होगा,पर उतना भी नहीं।
किसी की कामयाबी देखकर घबरा न जाना
जुनून को सुकून चाहिए,पर उतना भी नहीं।
भला जरूर करना लोगों का,बस खुश करने की कोशिश नहीं
दोस्त जरूर चाहिए सबको,पर उतने भी नहीं।
फकत दिल का रोना भी कोई रोना है यारों
गम और भी हैं ज़िंदगानी में,कम्बख्त बस यही तो नहीं।
©युगेश
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Tuesday, May 8, 2018

अहं

धृतराष्ट्र आँखों से अंधा
पुत्र दुर्योधन अहं से अंधा था
उसकी नज़रों से देखा केशव ने
चित्र- गूगल आभार 
चारों ओर मैं ही मैं था।

जब भीम बड़े बलशाली से
बूढ़े वानर की पूँछ न उठ पाई
बड़ी सरलता से प्रभु ने
अहं को राह तब दिखलाई।

जैसे सुख और माया में
धूमिल होती एक रेखा है
वैसे मनुज और मंज़िल के बीच
मैंने अहं को आते देखा है।

जितनी जल्दी ये ज़िद छुटे
अहंकार का कार्य रहे,अहं छुटे
मनुज को भान स्वयं का होता है
सूर्य वही उदय तब होता है।
©युगेश

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