Wednesday, November 23, 2016

जनरल बोगी

कभी कभी दुःख में भी विनोद होता है,जरुरत है उसे ढूंढने की।कैसे कभी कभी हम अपनी गलतियों पर भी हंसने लगते हैं।शायद व्यंग, हास्य दुःख से ही प्रोत्शाहित होते हैं।बहुत सी चीजें जहाँ आपकी मस्सकत,दिक्कत से हास्य उत्पन्न होता है उनमे से एक है ट्रैन की जनरल बोगी की सफर,यह और भी खास हो जाए जब आप बिहार में सफर कर रहे हों।मैंने हमेशा माना है भोजपुरी काफी प्रेम और भोलेपन की भाषा है ऐसे में सच्चा विनोद भोलेपन में ही मिलता है तो यह कविता मैंने भोजपुरी में ही लिखना उचित समझा.......

चल गैनी स्टेशन पर
ट्रैन देलस धोका
चार घंटे लेट रहनी
पच गईल लिट्टी चोखा।1।

स्टेशन रहले आरा के
भीड़ रहल भारी
आयिल ट्रैन,भाग मर्दे
चित्र-गूगल आभार 
कहीं छूट न जाई गाड़ी।2।

रुमाल के कमाल देखा
होईल न कोई चूक
फेक ओकरा के सीट बुक करनी
अइसन निशाना अचूक।3।

सीट रहनी जनरल के
किस्मत हम्मर फुटल बा
बोझा कपार पर धर ओ मर्दे
ओइजे आदमी बैठल बा।4।

भीड़ एकदम ठसम-ठस
फर्स भी भईल बैठे के सीट
तबले रउवा गाना बजौले
लगावे लू जब लिपस्टिक।5।

इतना में आपातकालीन खिड़की से
दू गो बोरा अइले,हम कहनि ई का बा
कह देलस उ,एकरा में चाउर
और ओकरा में घर के गेहुँ बा।6।

माथा हम्मर चकरा गईल
और उ कहनी भैया एगो रिक्वेस्ट बा
तनी हटा न खिड़किया से
एइजे से हमरो के घुसे के बा।7।

एक के सीट में दू
और चार के सीट में आठ हो
Maximum haulage capacity के
Calculation ही बेकार हो।8।

अब का कहीं आपन journey
खुबे दिक्कत झेलनी
पर सुक्र हो भगवन के
सही सलामत घर पहुंचनी।9।
Rate this posting:
{[['']]}

Sunday, October 30, 2016

पुल और प्रेम

"तू किसी रेल सी गुजरती है 
 मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।"
दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियाँ है,बड़े ही आसान शब्दों में प्रेम की बारीकियों को रखा गया है।आपने फिल्म मसान में इस गाने को सुना होगा।अगर इन पंक्तियों को ध्यान से पढ़ा जाये तो आपको एक पुल और प्रेम में कई समानताएं मिलेंगी।जैसे दो छोर को जोड़ता है एक पुल ठीक उसी प्रकार ईश्वर की दो भिन्न कृति दो छोर यानि स्त्री और पुरुष को जोड़ता है प्रेम।प्रेम जो निरंतर होता है,असीम होता है,खूबसूरत होता है और बेहद होता है........


पुल और प्रेम
भावों के पुलिन्दों से बाँध कर रखा था
चित्र-गूगल आभार 
प्यार का वो पूल हमारा
जिसके एक छोर पर तुम थी
और दूसरे छोर पर मैं
जैसे जोड़ती है दो किनारों को एक पूल
वैसे हमें भी जोड़ रखा था
तुम्हारी प्यारी आँखों को तकती मेरी आँखें
तुम्हे आग़ोश में लिए मेरी बाहें
जब गुजरती है खूबसूरत वादियों से
अच्छा लगता है
इन ख़ामोशियों में तुमसे जुड़ना
अच्छा लगता है
जो बत्तियों से सजा दिए जाते हैं
किसी उत्सव में पूल कई
वैसे तुम संग सजना अच्छा लगता है
हर रंग में तेरा जच्चना अच्छा लगता है
जैसे थरथराती है भार से पुल
वैसे प्यार पर समय की मार भी
अच्छा लगता है
पर एक फर्क है
जिसे अनदेखा नही कर सकता
ये पुल दो छोर को बांधे हुए
चंद सालों का है या उस से आगे
पर ये जो प्यार है हमें जोड़े हुए
ये निरंतर है,असीम है
खूबसूरत है ,बेहद है
और ये पुल अच्छा लगता है
हमारा प्यार और भी अच्छा लगता है।
(c)युगेश


Rate this posting:
{[['']]}

Saturday, July 9, 2016

तू बला सी खूबसूरत है

तू बला सी खूबसूरत है
ऐसा लोग कहते हैं
कोई एक नही कहता
हर लोग कहते हैं।
तेरी खुबसुरुति की नुमाइंदगी
चित्र-गूगल आभार 
हर रोज करते हैं
जबसे सीरत देखी
थोडा और करते हैं।
तू उस मस्त बारिश की तरह है
जो हौले से बरसती है
जो भीगते हैं तो जिंदगी क्या है
महसूस करते हैं।
जो छिप जाती है तू
बादलों में उस बारिश की तरह
माफ़ करना पर हम तुम्हे
जरा मगरूर करते हैं।
तेरे आँखों की चमक
तेरे पायल की धमक
सच कहता हूँ
हमें मदहोस करते हैं।
थोड़ा अपना ख्याल रखना
चेहरे पर बस यही हाँ यही मुस्कान रखना
क्योंकि इसी मुस्कान पर हम जीते हैं
इसी मुस्कान पर हम मरते हैं।
और ऐसा बस मैं नही कहता
ऐसा हर लोग कहते हैं।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}

Sunday, June 26, 2016

मैं कविता हूँ

मैं एक कवी हूँ,जाहिर है कविता मुझे पसंद है/पर एक बार अनायास ही ख्याल आया की इतनी सारी कवितायेँ पढ़ी और लिखी पर कभी ऐसी कोई कविता नहीं पढ़ी या लिखी जो कविता क्या है बतलाती हो/तो क्या है कविता इसे बतलाने की मेरी एक कोशिश..........

मैं विचार हूँ,मैं उद्गार हूँ
कभी प्यार तो कभी आभार हूँ
कभी किसी का क्रोध हूँ
तो कभी आत्मबोध हूँ
मैं कौन हूँ?मैं कविता हूँ।1।
चित्र-गूगल आभार 

कभी आवेग हूँ तो कभी राग हूँ
मैं विचारों का शैलाब हूँ
कभी तरुण हूँ,कभी प्रौढ़ हूँ
जीवन के पहलु से मैं युक्त हूँ
मैं कौन हूँ,मैं कविता हूँ।2।

मेरे रूप में विस्तार है
कभी वीर है,कभी श्रृंगार है
कभी विभस्त,करुण, अद्भुत,रौद्र
तो कभी शांत,तो कभी हास्य है
मैं कौन हूँ?मैं कविता हूँ।3।

कभी माखनलाल की अभिलाषा हूँ
कभी दुष्यंत की परिभाषा हूँ
कभी मधुसाला की हाला हूँ
तो कभी कालजयी महाभारत हूँ
मैं कौन हूँ?मैं कविता हूँ।4।

मैं साहित्य का परिचायक हूँ
मैं इसको सम्पूर्ण करूँ
कभी होली हूँ,कभी दीवाली हूँ
मैं साहित्य की रवानी हूँ
मैं कौन हूँ?मैं कविता हूँ।5।

मैं परस्पर हूँ,मैं निरंतर हूँ
उन्मुक्त विचारों का द्योतक हूँ
जब तक मानव सभ्यता हूँ
मैं जिन्दा हूँ
मैं कौन हूँ? मैं कविता हूँ।6।
Rate this posting:
{[['']]}

Thursday, May 12, 2016

बिटिया

कभी बचपन में बोला था तूने
कब शादी करोगी मेरी
हंसकर बोला मैंने बड़े शौक से

बड़े धूमधाम से जब करनी होगी तब होगी
बचपना था तुम्हारा हंसी थी मेरी
आज खुसी है तेरी और मजबूरी मेरी
तू अब बच्ची न थी और न ही जिद्दी
पर शायद जिद्दी मैं हो गयी थी
एक और नवजीवन था
एक और माँ का अपनापन था
प्यार तो अब भी उतना ही था
पर एकाधिकार नही था
अनायास ही सारा जीवन और
तेरा प्यारा बचपन आँखों के सामने
मानो दौड़ने सा लगता है
तेरी वो प्यारी हँसी चेहरे पर मुस्कान
आँखों में पानी ले आती है
जब भी लाड़ली मेरी मुझसे पूछती है
माँ याद मेरी आती है
याद बेटी हर दफा हर पल सताती है
ये हरयाली न अब मुझको ही भाती है
तू जो तोड़ लाती थी फूलों को कहीं चुनके
की अब फूलों से न वो खुसबू ही आती है
क्या कर खुसी मिली तुझको विदा करके
की मेरी हर सांस बस तुझको बुलाती है
पर है ये जो नियम सृस्टि का
उसको है वहन करना
पर इस दिल के कण-कण में
होता तेरा होना/
©युगेश

Rate this posting:
{[['']]}

Friday, April 29, 2016

वीरांगना

लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था"आज़ादी की रक्षा करना केवल सैनिकों का काम नहीं है,पुरे देश को मज़बूत होना होगा/"कितनी तथ्यता है इस विचार में/पर सोचने की बात है सैनिकों को इतनी मज़बूती कहाँ से मिलती है/देश प्रेम तो है और वो आत्मबल जो वो वीरांगनाएं प्रदान करती हैं जो उन्हें और भी मज़बूत करता है/उनका जीवन भी तपस्या होता है/पर जो सैनिक के आने का सन्देश होता है तो मानो तपस्या का फल मिल गया/उनका प्रेम और भी निष्छल और भी आत्मीय हो जाता है........

सजल हुई जो आँखें तेरी
भागी दौड़ी भरी दुपहरी
खबर हुई सालों पर पिया आये थे
सालों का विनोद संग लाये थे।

चित्र - गूगल आभार 
धड़क रहा था दिल व मन
अहा!कितना स्वछन्द यौवन
घर में जो किलकारी खेल रही
खत्म हुई इंतज़ार की वो घड़ी।

शर्माना उसने भुला था
माना लोगों का रेला था
वो बस दौड़ी आगे जायेगी
जो पिया मिले ठहर जायेगी।

पर मन में थोडा असमंजस था
क्या बोलेगी संकोच हुआ
फिर सोचा थोडा रुठ वो जायेगी
प्रेम रूप फिर जी पायेगी।

पिया जरूर मनाएंगे
हाँ-हाँ कितना तड़पायेंगे
पर तीव्र गति क्यों ठहर गयी
क्या हुआ घटा घनघोर हुई।

प्रण लिया था न कुछ बोलेगी
पर क्रंदन ही वो बोली थी
हाँ पिया लौट वापस आये थे
पर पोशाक तिरंगे की लाये थे।

वो लिपट गयी और सिसक पड़ी
कहें क्या उससे वे सोच रहे
पर भूल गए की वो पत्नी वीर की
कीमत कितनी आँखों के नीर की।

हाँ,थोड़ी बेहोशी थी
पर जाग उठी वीरांगना वो ऐसी थी
फिर पिया को किया सलाम आखरी
धन्य तू भारत की नारी।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}

Thursday, March 31, 2016

सोच दुरुस्त रखो


"भारत की एक खासियत रही है/जो है अनेकता में एकता/"unity in diversity" एक सोच जो हमें औरों से अलग करती है/ये बात हमे खुश रखती है/पर ये बात कुछ लोगों को खटकती भी है/अगर लोग एक रहे तो उनका जीवन यापन चले कैसे/ऐसे में जरुरत है अपनी अक्ल को इस्तेमाल करने की/आखिर कौन अपना है और कौन मतलब साधने को अपना बन हमारे आपसी भाईचारे को नुक्सान पहुँचाना चाहता है ये बात समझने और परखने की ज़रूरत है/इसलिए जरा सोच दुरुस्त रखिए............"


न योगी को सुना न ओवैसी को
मुझे और भी काम हैं
चित्र - गूगल आभार 
फ़िज़ूल वक़्त किसको
वो बोलते हैं
या बस बोल देते हैं
जीवन यापन कैसे चले 
चलो ज़हर घोल देते हैं
हम भी तो जनता हैं
मासूम से भोले-भाले
जिस पडोसी की मीठी सेवइयां चखी
जिस पडोसी के मीठे लड्डू चखे
वो फिर मुह खोल देते हैं
और हम भाईचारे को तौल देते हैं
थोडा रोष जरूर है लोगों से 
उनसे नहीं अपने लोगों से
एक अपील है सबसे
विचार कीजिये तब व्यवहार कीजिये
याद है कभी अंग्रेज़ आये थे
मालूम होता है की
ये कुछ नस्लें उनसे प्रभावित हैं
सोच अपनी दुरुस्त रखो
वो बोलते ही रहेंगे
तुम अपनी बात रखो
अरे इतने साल से पडोसी थे
अखलक को न समझ पाये
और वो जिन्हें जानते भी नही
उन्हें अपना रहनुमा मत समझो
बड़ी पुरानी सभ्यता है हमारी
फ़िज़ा में रंग सदभाव का रहा हैं
हमें तो गुलाब की तरह महकने की आदत है
काँटों से भला कौन डरा है/
(c)युगेश 
Rate this posting:
{[['']]}

Sunday, February 14, 2016

प्यारी

मीलों दूर सही पर दूर नहीं
मजबूर सही मगरूर नहीं    
तेरे पायल की छम-छम प्यारी
दो पल का सुना मंजूर नहीं/
इस दिल के सुने उपवन में
कुछ फूल खिले दो-चार खिले
उन पर इस भँवरे का आना
प्यारी मेरा कोई दोस नहीं/
क्या कपट किया क्या गुनाह किया
मेरे दिल को तू हर लायी थी
फिर भी हमने हाँथ बढ़ाया
और प्यारी तू घबराई थी/
ये संजीदा दिल चीत्कार गया
दिल अपना तुझपर हार गया
न शोर हुई न ग़दर हुआ
प्यारी मुस्काई और कतल हुआ/
कुछ अपने भी अफ़साने थे
कुछ अपने थे कुछ बेगाने थे
बेगानों में अपना पाया था
प्यारी पाकर जी हरषाया था/
कुछ कहना था कुछ सुनना था
मैं बोल गया तू भाग गयी
मैं खोया था असमंजस था
फिर प्यारी मुड़ी और मुस्काई/
पल वो भी बिलकुल ठहरा था
दिल का घाव जो गहरा था
प्यारी मरहम बनकर आई थी
सावन की झड़ी लगाई थी/
बारिश की हर वो बून्द तेरे चेहरे पर
श्रृंगार करेगा क्या सोना
तुझे देख उस दिन मैंने जाना
प्यारी,क्या खूब है सावन का होना/
याद है मुझको भी वो क्षण
तू बाँहों में ऊपर नील गगन
दूर जाने की बारी आई थी
प्यारी तू घबराई थी/
मेरे लिबास पर तेरे आँखों का मोती
बोल गया आखिर क्यों रोति
एहसास दिलाया फिर उसको
प्यारी प्यार करूँ मैं केवल तुझको/
हांथों में फिर हाँथ लिये
आना मुझको वापस यहीं प्रिये
और कहने को जो बात रही
कह देता हूँ आज वही
तेरे पायल की छम-छम प्यारी
दो पल का सुना मंजूर नहीं/
तेरे पायल की छम-छम प्यारी
दो पल का सुना मंजूर नहीं/
Rate this posting:
{[['']]}

Monday, February 1, 2016

ब्रह्माजी की दुविदा

"हम लोग भी अजीब हैं,पैदा हुए तो इंसान थे,फिर कुछ हिन्दू हो गए कुछ मुसलमान/इस पर भी मन न माना  तो कुछ क्षत्रिय,ब्राह्मण,वैश्य,शूद्र,शिया,शुन्नी हो गए/पर हम मानव है धरती पर सबसे चालक सबसे समझदार/हाँ,कभी कभी दिखावे में,बहकावे में आ जाते हैं पर इतना तो चलता है/ खैर इतने समझदार थे सो कुछ शर्माजी,गुप्ताजी नजाने क्या-क्या बन गए(नोट -सभी पात्र एवं घटनाये काल्पनिक हैं :D ) /फिर शुरु हुई राजनीती/हाँ भाई अब आने वाला था मज़ा/मैंने सोचा ऐसी स्तिथि स्वर्ग में होती तो कैसा होता और इसी सोच में बन गयी एक और कविता.... "

कुछ यूँ हुई थी दिन की शुरुवात
परिणाम आया अभियांत्रिकी प्रवेश परीक्षा का 
और शर्माजी के बच्चे हुए फ्लैट 
शर्माजी झल्लाए और मुन्ने पर चिल्लाये
फिर धीरे से बोले थोड़ा संकुचाए 
बगलवाले गुप्ताजी के बेटे क्या कुछ कर पाये 
सुपुत्र बोले बड़े नाज़ थे 
पापा मैंने आपका मान बढ़ाया था 
और गुप्ताजी का बेटा मुझसे भी पीछे आया है
फक्र हुआ उन्हें मुन्ने पर 
मुन्ना बगलवाले से तो आगे बढ़ पाया था 
मूँछ हुई उनकी ऊँची 
जो मुन्ने के कहने पर मुंडवाया था 
फक्र से घूमूँगा मैं तो अब 
शर्माजी थे सोच रहे 
पर कहाँ दाखिला करवाएं मुन्ने का 
इस कौतुहल से जूझ रहे 
सर पीट रहे थे ब्रह्माजी 
देख शर्माजी का पागलपन 
बोल उठे देखो सरस्वती  
क्या उचित दिखावे का बंधन 
बस टोक दिया सरस्वतीजी ने
कहा आपको न आगे कुछ कहना है 
शर्माजी हो या गुप्ताजी 
साथ किसी का न देना है 
धरती से प्रेरित होकर लोग यहाँ 
अब झुण्ड बना घुमा करते हैं 
संभल कर कहना कुछ 
वरना बड़ा अनर्थ हो जाएगा 
पता चला है गुप्त सूत्रों से 
कितने सारे बैनर लोगों ने बनवाए हैं  
पता चला है नारदजी 
आजतक से होकर आये हैं 
स्तब्ध हो गए ब्रह्माजी 
देख नारी की पीड़ा 
किसने डाला इन लोगों में 
ये जाती का कीड़ा 
की तभी हुई आवाज़ कुछ 
ब्रह्मा का शिंहासन था डोल गया 
पता चला बंगले के सामने से कोई 
रैली करके चला गया 
ठीक कहा था सरस्वतीजी ने
बिलकुल सही था अंदेशा 
गुप्तजी के यूनियन ने 
मीडिया तक पहुँचाया था संदेसा 
भयभीत हुए तब ब्रह्माजी 
देख नयी राजनीती 
बस अपना मतलब साधने को 
बनती कैसी कैसी रणनीति 
बोल उठे देखो सरस्वती 
अब मैं राजनीती से सन्यास लूंगा 
और कह देना विष्णु शिव को 
अगले त्रिदेव चुनाव से 
मैं अपना नाम वापस लूंगा/
©युगेश

Rate this posting:
{[['']]}