Monday, July 23, 2018

दिल के किराएदार

बकौल मोहब्बत वो मुझसे पूछता है
दिल के मकान के उस कमरे में
क्या?अब भी कोई रहता है।
थोड़ा समय लगेगा,ध्यान से सुनना
बड़ी शिद्दत से बना था वो कमरा
कच्चा था पर उतना ही सच्चा था
उसे भी मालूम था कि उसकी
एक एक ईंट जोड़ने में मेरी
चित्र - गूगल आभार 
एक एक धड़कन निकली थी
इकरारनामा तो था
पर उस पर उसके दस्तख़त न हो पाए
उसे कोई दूसरा कमरा पसंद था
मेरा कमरा थोड़ा कच्चा था
सो अब सीलन पड़ने लगी थी
थोड़ी दरारें भी आ गईं थी
लोगों के कहने पर थोड़ी
मरम्मत करवाई है
सीलन और दरारें थोड़ी भरने लगी हैं
अब मैं वो कमरा किराये पर लगाता हूँ
किरायेदार भी अच्छे मिल जाते हैं
पर किसी में ऐसी बात नहीं मिली
कि कमरे को मकान से जोड़ दे
दरारे कम हो गई हैं
पर अब भी कुछ बाकी हैं
हाँ, मैंने इकरारनामे की कुछ शर्तें
बदल जरूर दी हैं
किराया ठीक ठाक मिल जाता है
तकलीफ अब उतनी नहीं होती।
©युगेश

https://youtu.be/M2LG7xv2y7g
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Thursday, July 12, 2018

जब मेरी बच्ची रोती है

आँखें मूँद इंसानियत जाने कहाँ सोती है
चित्र - गूगल आभार 
जीते जी मर जाता हूँ मैं जब मेरी बच्ची रोती है|
क्या कुछ नहीं बीता नाज़ुक सी उस जान पर
माँस के इस ढांचे में अब कहाँ वही बच्ची होती है।
छलनी-छलनी हो जाता जिगर मेरा,जब जिगर के टुकड़े से
कहाँ छुआ,कैसे हुआ ये तफ्तीश होती है।
कमाल है समाज,मुझे सोच पर तरस आता है
जुर्म करता है कोई और चेहरा मेरी बच्ची ढकती है।
हुजूम सा आया है सड़कों पर खबर है मुझे
अफ़सोस!ये सबकुछ हो जाने के बाद होती है।
हाल किसी ने न जाना,बस कौम पूछते रह गए
सियासत है जनाब,अफ़सोस ऐसी ही होती है।
गुरुर अब भी उतना हीं है,मुझे अपनी बच्ची पर
आदमी ही हूँ,कौम जिसकी बस एक पिता की होती है।
©युगेश

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