Sunday, July 10, 2022

खबर जो भिजवाई तो भिजवाई कैसे

खबर जो भिजवाई तो भिजवाई कैसे
बिना कहे जतलाई तो जतलाई कैसे।

बदल गया चंद लम्हों में ये गुलिस्तां
जिस हवा से उजड़ा चमन वो आई कैसे।

देख कर भी सब कुछ अनदेखा कर दिया
पट्टी इतने अच्छे से आँखों पर बंधवाई कैसे।

जवाबदेही चाहिए तुम्हें हर शख्स से
ज़िम्मेदारियाँ अपनी बखूभी भुलाई कैसे।

साख के फूल हो उससे सवाल करते हो
कभी जाना तुम्हें वो सींच पायी कैसे।

बातें बड़ी करके मुकर जाना कमाल है
याददाश्त कमज़ोर की जुगत लगाई कैसे।

देखते जिस चश्मे से तुम बखूभी ज़माना
क्यूँ, हटा भी न पाई तुमने वो काई कैसे।

जब उतार न सका कर्ज़ माँ बाप का
तुमने गलतियाँ गिनाईं तो गिनाईं कैसे।

राह पकड़ी तो वो पगडंडी बने रहे
मंज़िल आई तो औकात दिखाई कैसे।

सही को गलत कहके खुद को सही बताना
नायाब ये काबिलियत लाई कैसे।

जरूरत पड़ी तो थामी थी उँगली उनकी
आन पड़ी जरूरत उनको, बखूभी झुठलाई कैसे।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार


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Wednesday, July 6, 2022

मैं और टमाटर

मैं और टमाटर अक्सर ये बातें करते हैं
टमाटर देशी होती तो स्वाद कैसा होता
उसकी चटनी बनती तो कैसा होता
चटनी में थोड़ी मिर्ची पिसी जाती
तुम थोड़ी और सस्ती होती
तो मेरी थैली पूरी भर जाती
स्वाद के साथ मैंने बजट भी देखा है
मुझे तुम्हारा बीज पसंद नहीं
सो उन्हें फुलवारी में फेंका है
स्वाद और भी दूना हो जाता है
जब जीरे का तड़का पड़ जाता है
मेरे देश में हज़ारों लोगों का गला
बस रोटी चटनी से तर जाता है।
©युगेश 

चित्र - गूगल आभार 

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Friday, June 24, 2022

वो लड़की जो लम्बे बाल रखती है।

बड़ी कसमसाई नाज़ुक खयाल रखती है
वो लड़की जो लम्बे बाल रखती है।

आँखों पर कितनें अनगिनत सवाल रखती है
मेरा नाम लिख, चेहरे को लाल रखती है।

कैसे न सुनूँ , न मानूँ बातें उसकी
कितने सलीके से वो हर बात रखती है।

बाहों से उठाकर उसे मैं दिल में रखता हूँ
लड़की वो मुझको इतनी जमाल लगती है।

घबरा भी जाता हूँ उसके सवालों से कभी
वो लड़की कभी गज़ब कोतवाल लगती है।

उसके चेहरे पर हमेशा नूर दमकता है
मुखड़े पर जाने कहाँ से लाकर चाँद रखती है।

उसकी आँखों से देखी जब से दुनिया मैंने
ये दुनिया भी क्या खूब कमाल लगती है।
©युगेश 

                                

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Tuesday, April 12, 2022

तलब नहीं मुझे

तलब नहीं मुझे
तेरी ताबीर करनी है
लकीरें कुछ
हाथों में तेरे,कुछ मेरे हैं
जोड़कर इन्हें तक़दीर करनी है।
उसे रूवासा होना
अच्छा नहीं लगता
जिसे देखकर मुस्कुरा दे
वो तस्वीर बननी है।
सुना है एक से स्वाद से
वो ऊब सी जाती है
जो पसंद हो उसे
वो तासीर बननी है।
सोने, चाँदी, जवाहरात
मन किसका भरता है
जिसे पाकर उसे
कोई ख्वाहिश न रहे
वो जागीर बननी है।
नाज़ुक सी कली है
हौले से थामना
गुमशुम हो जाए
न ऐसी तकसीर करनी है।
मिसालें दी जाएँ
हम दोनों की जानाँ
कहानी ऐसी
बेनज़ीर बननी है।
©युगेश


तकसीर - चूक
बेनज़ीर - बेमिशाल 

चित्र - गूगल आभार 


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Sunday, March 13, 2022

मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ।

जब सूरज उगता है, मैं उसे नमन करता हूँ
जब वह अस्त होता है, मैं उसे प्रणाम करता हूँ
मैं माँ भारती की शिराओं में लहू बन बहता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ।

मैं देश की तररक्की का परिचायक हूँ
भारत की अर्थव्यवस्था का दिव्य भव्यभाल हूँ
मैं लिए हौंसला फौलाद का फौलाद पर दौड़ता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ

जाने कितनों के सपनों को मैं पंख लगाता हूँ
हर दिन लाखों-करोड़ों को मंज़िल तक पहुँचाता हूँ
मैं लाखों रेलकर्मियों के कंधे पर सवार चलता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ

चिनाब कभी लाल थी, उस पर अजूबे बनाता हूँ
मैं अपनी विरासत को नई तकनीक से चलाता हूँ
मैं दसो-दिशाओं में अविरल चलता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ

धमनियाँ हूँ देश की,मैं धड़कता हूँ और देश चलता है
पता नहीं, कितनों का मेरे होने से घर चलता है
"वन्दे भारत" की सौगात मैं देश को अर्पण करता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ
©युगेश


चित्र - गूगल आभार



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Friday, March 11, 2022

ज़िम्मेदारियाँ सवाल करती हैं

ज़िम्मेदारियाँ सवाल करती हैं
कुछ सहज कुछ असहज
मैंने असहज सवाल चुने
आज मैं अकेला खड़ा हूँ
सहजता देख मुस्कुरा रही है
ज़िम्मेदारियाँ संकुचित हैं
एक एक पाए टूट रहे हैं
जब भार कंधे पर हो
तो पहले कमर टूटती है
जब घर पर छत नहीं होती
तो बारिश भीतर होती है
मैंने छतरी खो दी है
मुझे अब भींगना है
मैंने जो तिरपाल बाँधे थे
वो असहज होकर निकल गए
मुझे घबराहट है अनहोनी की
अफसोस! यही वास्तविकता है।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार



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भारत मेरा देश महान

किसी भी व्यक्ति की आज़ादी तभी तक सुरक्षित है जब तक उसका देश आज़ाद है। देश तभी सुरक्षित रहेगा जब उसकी विरासत को बच्चों तक पहुँचाएँ। देश की संप्रभुता, देश प्रेम की नींव बच्चों के अंदर रखें। मेरे छोटे भाई सारांश ने मुझे "गणतंत्र दिवस" पर विद्यालय में बोलने के लिए एक कविता लिखने को कही थी। इस कविता की उपज इसी विचार से हुई है। 

भारत मेरा देश महान
सब करते इसका गुणगान
गाँधी की इस धरती को
सौ-सौ बार मैं करूँ प्रणाम।

उत्तर में हिमालय शोभता
दक्षिण में समुद्र पावँ को धोता
सारे धर्मों के लोग हैं रहते
नित नया त्यौहार है होता।

भारत की कश्मीर है शान
राजस्थान में देखो रेगिस्तान
अलग अलग जगहों पर देखो
मिलते नए नए पकवान।

मुझको प्यारा मेरा भारत
विश्वगुरु कहलाता था
विक्रमशिला और तक्षशिला
सुंदर इतिहास हमारा था।

नन्हा सिपाही मैं भारत का
देश के काम मैं आऊँगा
अपने अच्छे काम से मैं
भारत माँ की शान बढ़ाऊँगा।
©युगेश




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Saturday, January 8, 2022

दिल के तहखाने से

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।

हम ढूँढने चले थे रोशनी
पर मिले सब झूठे उजाले
हुए लावारिस सपने वो,
जो हमने मिलकर के पाले।

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।

मुरझाए फूल वो जो तुमने
नोटबुक के पन्नों में डाले।
प्रेम के इम्तिहान में तुम्हारे
पत्र सभी पढ़ डाले।

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।

तुमसे मिलकर हमने सारे
पैमाने बदल डाले।
च़राग़ बुझाए ढ़ूंढ़ रहे हैं
हुए थे जिसके हवाले।

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।
©युगेश 

चित्र - गूगल आभार


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