Sunday, February 14, 2016

प्यारी

मीलों दूर सही पर दूर नहीं
मजबूर सही मगरूर नहीं    
तेरे पायल की छम-छम प्यारी
दो पल का सुना मंजूर नहीं/
इस दिल के सुने उपवन में
कुछ फूल खिले दो-चार खिले
उन पर इस भँवरे का आना
प्यारी मेरा कोई दोस नहीं/
क्या कपट किया क्या गुनाह किया
मेरे दिल को तू हर लायी थी
फिर भी हमने हाँथ बढ़ाया
और प्यारी तू घबराई थी/
ये संजीदा दिल चीत्कार गया
दिल अपना तुझपर हार गया
न शोर हुई न ग़दर हुआ
प्यारी मुस्काई और कतल हुआ/
कुछ अपने भी अफ़साने थे
कुछ अपने थे कुछ बेगाने थे
बेगानों में अपना पाया था
प्यारी पाकर जी हरषाया था/
कुछ कहना था कुछ सुनना था
मैं बोल गया तू भाग गयी
मैं खोया था असमंजस था
फिर प्यारी मुड़ी और मुस्काई/
पल वो भी बिलकुल ठहरा था
दिल का घाव जो गहरा था
प्यारी मरहम बनकर आई थी
सावन की झड़ी लगाई थी/
बारिश की हर वो बून्द तेरे चेहरे पर
श्रृंगार करेगा क्या सोना
तुझे देख उस दिन मैंने जाना
प्यारी,क्या खूब है सावन का होना/
याद है मुझको भी वो क्षण
तू बाँहों में ऊपर नील गगन
दूर जाने की बारी आई थी
प्यारी तू घबराई थी/
मेरे लिबास पर तेरे आँखों का मोती
बोल गया आखिर क्यों रोति
एहसास दिलाया फिर उसको
प्यारी प्यार करूँ मैं केवल तुझको/
हांथों में फिर हाँथ लिये
आना मुझको वापस यहीं प्रिये
और कहने को जो बात रही
कह देता हूँ आज वही
तेरे पायल की छम-छम प्यारी
दो पल का सुना मंजूर नहीं/
तेरे पायल की छम-छम प्यारी
दो पल का सुना मंजूर नहीं/
Rate this posting:
{[['']]}

Monday, February 1, 2016

ब्रह्माजी की दुविदा

"हम लोग भी अजीब हैं,पैदा हुए तो इंसान थे,फिर कुछ हिन्दू हो गए कुछ मुसलमान/इस पर भी मन न माना  तो कुछ क्षत्रिय,ब्राह्मण,वैश्य,शूद्र,शिया,शुन्नी हो गए/पर हम मानव है धरती पर सबसे चालक सबसे समझदार/हाँ,कभी कभी दिखावे में,बहकावे में आ जाते हैं पर इतना तो चलता है/ खैर इतने समझदार थे सो कुछ शर्माजी,गुप्ताजी नजाने क्या-क्या बन गए(नोट -सभी पात्र एवं घटनाये काल्पनिक हैं :D ) /फिर शुरु हुई राजनीती/हाँ भाई अब आने वाला था मज़ा/मैंने सोचा ऐसी स्तिथि स्वर्ग में होती तो कैसा होता और इसी सोच में बन गयी एक और कविता.... "

कुछ यूँ हुई थी दिन की शुरुवात
परिणाम आया अभियांत्रिकी प्रवेश परीक्षा का 
और शर्माजी के बच्चे हुए फ्लैट 
शर्माजी झल्लाए और मुन्ने पर चिल्लाये
फिर धीरे से बोले थोड़ा संकुचाए 
बगलवाले गुप्ताजी के बेटे क्या कुछ कर पाये 
सुपुत्र बोले बड़े नाज़ थे 
पापा मैंने आपका मान बढ़ाया था 
और गुप्ताजी का बेटा मुझसे भी पीछे आया है
फक्र हुआ उन्हें मुन्ने पर 
मुन्ना बगलवाले से तो आगे बढ़ पाया था 
मूँछ हुई उनकी ऊँची 
जो मुन्ने के कहने पर मुंडवाया था 
फक्र से घूमूँगा मैं तो अब 
शर्माजी थे सोच रहे 
पर कहाँ दाखिला करवाएं मुन्ने का 
इस कौतुहल से जूझ रहे 
सर पीट रहे थे ब्रह्माजी 
देख शर्माजी का पागलपन 
बोल उठे देखो सरस्वती  
क्या उचित दिखावे का बंधन 
बस टोक दिया सरस्वतीजी ने
कहा आपको न आगे कुछ कहना है 
शर्माजी हो या गुप्ताजी 
साथ किसी का न देना है 
धरती से प्रेरित होकर लोग यहाँ 
अब झुण्ड बना घुमा करते हैं 
संभल कर कहना कुछ 
वरना बड़ा अनर्थ हो जाएगा 
पता चला है गुप्त सूत्रों से 
कितने सारे बैनर लोगों ने बनवाए हैं  
पता चला है नारदजी 
आजतक से होकर आये हैं 
स्तब्ध हो गए ब्रह्माजी 
देख नारी की पीड़ा 
किसने डाला इन लोगों में 
ये जाती का कीड़ा 
की तभी हुई आवाज़ कुछ 
ब्रह्मा का शिंहासन था डोल गया 
पता चला बंगले के सामने से कोई 
रैली करके चला गया 
ठीक कहा था सरस्वतीजी ने
बिलकुल सही था अंदेशा 
गुप्तजी के यूनियन ने 
मीडिया तक पहुँचाया था संदेसा 
भयभीत हुए तब ब्रह्माजी 
देख नयी राजनीती 
बस अपना मतलब साधने को 
बनती कैसी कैसी रणनीति 
बोल उठे देखो सरस्वती 
अब मैं राजनीती से सन्यास लूंगा 
और कह देना विष्णु शिव को 
अगले त्रिदेव चुनाव से 
मैं अपना नाम वापस लूंगा/
©युगेश

Rate this posting:
{[['']]}