Monday, May 17, 2021

मेरे घर मेरी भाभी आई।

तोड़ वेदना की सांकल को
गर्मी में जैसे बरखा आई
घर की चौथी नींव जोड़ने
मेरे घर मेरी भाभी आई।

झरोखे से झांक रहा है आलय                       
यूँ सजे-धजे से आया कौन
माँ के चेहरे पर इंद्रधनुष सा
आह्लाद बनकर यूँ छाया कौन।

लुटा रही वो हाथों से ममता
कोई कसर नहीं रह जाती है
उन्माद सा क्यूँ है आँखों में
वो बेटी पाकर इतराती है।

नहीं मिलन ये दो लोगों का
कितनों का जुड़ता नाता है
वृक्ष-कुटुंब सघन तब होता
जब कोई बाहें फैला अपनाता है।

बाट जोहती घर की तुलसी
आगे इसको सींचे कौन
सिंदूर-रोली मंदिर की शोभा
घर की शोभा बोलो कौन।

वचन दिए जो सात हैं उसने
भैया मेरा निश्चय ही निभाएगा
आपकी आँखों का हर आंसू
उसकी आँखों से होकर जाएगा।

देख रहे हैं वो भी सब
उनका मन भी हरषाया है
माँ के हाथों से पिता ने
कुशलक्षेम भिजवाया है।
©युगेश 




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