Monday, October 23, 2017

काफी समय हुआ तुमसे मिले हुए

काफी दिन हुए तुमसे मिले हुए
कुछ बातें करनी थी
लबों से नहीं
आँखों से करनी थी।
फोन,पत्र में वो आनंद कहाँ
जो एक-दूजे के हाथों में हाथ रख
बोलने मुस्काने और
तुम्हारे शर्मा जाने में है।
तुम्हारे दिए हुए फूल
मैंने अब भी सहेज कर रखे हैं
एक पुस्तक में,माना सूख गए
पर ताज़गी अब भी वही है।
पता है भावनाओं का सैलाब है
जिसे मैंने रोक रखा है
हौले से पास आना
कहीं टूट न पड़ें ये।
पत्तों की सरसराहट
जैसे हवा से तुम्हारे दुप्पट्टे का सरकना
बेखौफ उड़ना हवा में
और तुम्हारा उसे पकड़ना।
आज जो मिलना होगा हवा जोरों की है
जो उड़ जाए दुप्पटा सूखे पत्ते की तरह
फिक्र मत करना
मैं उन्हें फिर से हरा कर दूँगा।
यादों की हरी टहनियाँ
आज शुष्क हो चली हैं
चिंगारी अभी भी सीने में है
आज चलो अलाव जलायेंगे।
थोड़ा समय लेकर आना
यादों की लकड़ियाँ ढेर सी हैं
सो अलाव देर तक जलेगी
और सिहर जाएगी हमारी रूह।
क्योंकि,काफी समय हुआ तुमसे मिले हुए
और बातें,बातें ढेर सी करनी है।
©युगेश
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Friday, October 20, 2017

तुम्हारे केश,तुम्हारी आज़ादी

वो जो गिरती है तो बड़ी शान से
जो लहराये हवाओं में जैसे अंगड़ाइयाँ लेती है
कभी उलझती भी है पर सुलझ भी जाती है
एक बेफिक्री सी है उसमें
तुमसी ही है पर तुम नहीं
हाँ,मैं तुम्हारे केशुओं की बात कर रहा हूँ
हाँ उन्ही केशुओं की जिन्हें तुम
अपनी उँगलियों से कभी इधर
कभी उधर करती हो
जैसे लोग कोशिश करते हैं
चित्र-गूगल आभार 
तुम्हारे साथ करने की
पर देखो तो,वो तो आदत से मजबूर हैं
एक जगह उन्हें टिकना कहाँ आया
बिल्कुल तुम्हारी तरह
आज़ादी उन्हें भी खूब पसंद आती है
इसीलिए तो मैं कहता हूँ
इन्हें खुले ही रहने दो
ये तुम्हारी आज़ादी जतलाते हैं
जो कोई तुम्हें टोकना चाहे
इशारा कर देना अपने केशुओं की ओर
ये ही तो नुमाइंदगी करेंगे
हाँ लहरा कर,कि तुम आज़ाद हो
हाँ, किसी की रोक किसी की टोक
का बस कहाँ चलता है
जब एक झोंका खुद पर भरोसे का चलता है
जब कभी हौंसला कम पड़े न
एक बार देख लेना इन केशुओं को
एक मुस्कान सी आएगी
और एक चमक सी चेहरे पर
कुछ कर गुजरने की
हाँ, तब भी भले मैं इन केशुओं की बात करूँ
पर लोग हाँ यही लोग बस तुम्हारी बात करेंगे
बात तुम्हारी हुनर की,तुम्हारी काबिलियत की
जानता हूँ रंग रूप की तारीफ पसंद है तुम्हे
पर एक बार चिढ़ना भी होता होगा
की क्या इस से परे भी मैं कोई हूँ
अरे! बिल्कुल हो
और वो तारीफ अलग होगी
जो तुम्हारे जज़्बे को सलाम करेगी
इसलिए अपने केशुओं की तरह
ऐसे ही आज़ाद रहना
और ये मैं कह रहा हूँ
मैं जो तुम्हें चाहने वाला नहीं हूँ
बल्कि तुम्हें मानने वाला हूँ।
©युगेश
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Wednesday, October 11, 2017

मैं चुप था क्योंकि मैं लाचार था

मैं चुप था क्योंकि मैं लाचार था
वो भौंक रहा था क्योंकि हाँथों में तलवार था
आज समय बदल गया हमारा तो क्या कहें
वो जो हमें अय्यार कह रहा है ना,कभी हमारा ही यार था।

ज़िन्दगी को यूँ फुसला-फुसला कर चलाया था
चित्र-गूगल आभार 
उन्हें तरस भी न आई जो धूं-धूं कर बस्ती को जलाया था
पता है बड़े सुकून से रहते थे लोग यहाँ भी
फर्क तब पड़ा जब एक साधु एक मौलवी रहने आया था।

ये जो दो रुपए में आपका भविष्य बताते हैं मेलों में
उनसे पूछना क्या इसी दो रुपए से अपना भविष्य बनाया था
दुनिया में लोग तो आपको ठगने को आमद हैं दोस्तों
कभी किसी को हमने बनाया था,कभी किसी ने हमको बनाया था।

गुरेज उन्हें भी हमसे कम नहीं था
अपने दिल को हमने क्या कम जलाया था
हम तो बस इसी धोके में फँस गए ऐ दोस्त
सुना था कुछ बन गए कुछ को मोहब्बत ने बनाया था।

ये जो चार दीवारों से घिरा हुआ है घर है मेरा
इसे हमने यादों से रंगा और सपनों से सजाया था
ये जिसमें मैं रहता हूँ मकान है घर कहाँ है मेरा
घर वो है जहाँ माँ-बाप ने मुझे गिरते गिरते सँभलना सिखाया था।
©युगेश
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Sunday, October 8, 2017

बच्चे खुला आसमान चाहते हैं

जो उनके खेलने की उम्र में उनसे खेल जाते हैं
बताइये इतनी दरिंदगी कहाँ से लाते हैं
नासमझ ने गुड्डे को गिर जाने पर बड़े प्यार से सहलाया था
चित्र-गूगल आभार 
वो गुड्डे-गुड़ियों को गिराते हैं फिर नोच जाते हैं।
वो जो सबकी नाक में दम कर देता था
उसके चेहरे की शरारत को गुम क्यूँ पाते हैं
व्यस्त ज़िन्दगी से वक़्त निकालिये साहब
बच्चे मासूम हैं,सब कहाँ समझ कहाँ कह पाते हैं।
बच्चे छोटे होते हैं पर एहसास बड़े होते हैं
पर तो हमने अपने कतरे हैं उनके तो खूब होते हैं
अभी तो उम्र है,आसमाँ उड़ान का खुला होना चाइए
ज़िम्मेदारी हमारी थी,ये चील कहाँ से आते हैं।
पौ फटते ही आसमान खुला होना चाइए
थोड़ी जिम्मेदारी हमारी थोड़ी आपकी होनी चाइए
हम फिर से गुड्डे-गुड़ियों के चेहरे पर मुस्कान चाहते हैं
वो कहते हैं वो खुला आसमान चाहते हैं।
©युगेश
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