Monday, September 2, 2019

रेत सा जो टिकता है कोई

रेत सा जो टिकता है कोई
घाव ये गहरा है कोई
गम समेटे जो हम खड़े हैं
ये मुस्कान देख हँसता है कोई।
चित्र - गूगल आभार 
भोर घर से जब निकलता
बोझ ख्वाबों का ले चलता है कोई
छूट जाए सपने तो क्या
न छुटे दफ्तर सो भागता है कोई।
चेहरे से सिकन को फेंकता
माथे से पसीना जैसे पोंछता है कोई
कहता है बहुत खुश हूँ
क्या खूब झूठ कहता है कोई।
मुफ़लिसी न उसकी कोई देख पाता
खुद्दार है वो ये कहता है कोई
मांड को जब दूध बताकर
जब शौक से पीता है कोई।
ठोकर पड़े जब सपनों की गठरी को
गाँठ और ऐंठता है कोई
तिल तिल कर वो जी रहा है
जब तिल तिल कर मरता है कोई।
भार शौक से उनके सपनों का सर पर
अपने सपनों की दुनिया तजता है कोई
सुना है वो मुस्कुरातें हैं देख उसको
सो अपने चेहरे पर मुस्कान रखता है कोई।
©युगेश
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