Saturday, May 9, 2020

जो गिरा वो कौन था?

8 मई को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुई दुर्घटना पर दुख होता है जिसमें १६ मज़दूरों की जान गई। पर दुख से ज्यादा रोष। रोष खुद से, रोष अपने इस समाज से जो अपने कर्णधारों को बचा न पाया। अब देश में लोग इस पर अपने राय देंगे। कोई किसी पर दोष लगाएगा कोई किसी पर। पर कौन जिम्मेदार है इस दुर्घटना का इसे बताने का हक़ है बस उन रोटियों को जो पटरीयों के किनारे बिखरी पड़ी थी......…


सुना! 
कोई गिरा और सरपट चल गई गाड़ी
जो गिरा वो कौन था?
पता है पर कहूँ कैसे
सुबह-सुबह मुँह कड़वा करूँ कैसे।
हाँ, पर मरा कौन था ,बताऊँ?
बताओ फुरसत में हैं।
मज़दूर था
अरे भैया! बहुत दुख हुआ।
बस! दुख हुआ, ग्लानि?
वो काहे।
भैया बहुत थे।
अच्छा, ऐसी बात है
नहीं तो कौन पूछता है
ये थोक में जाएं
तब समाज जागता है
पर इतना समय क्यूँ भैया।
यही प्रक्रिया है
जो सामाजिक कद में बौना है
समय सीमा वहाँ दूना है।
खोलो चैनेल, विवेचना होगी।
किसकी गलती है
सब बड़े शौक से जूते पहन
कालीन पर चलकर
कैमरे के पास आएँगे
और नंगे पैर मीलों
पथरीली पटरियों पर चलने वालों की
मृत्यु पर दोष किसका है बतायेंगे।
इतना आसान है?
बिल्कुल नहीं।
तो बताएगा कौन?
बताएँगी वो रोटियाँ जो फैल गई थी वहाँ
क्योंकि उन्हें सहेजा था जिसने
वो उन्हें तज गया
और अनाथ की भाँति भटक गयी वो
जैसे मज़दूर भटक गए थे
क्यूँकि हमने अनाथ कर दिया था उन्हें
और बताएँगे उनके खुले डब्बे
जो उनके प्राण के साथ उनके सपनों को भी
आज़ाद कर गए
और उनके बिखरे पड़े अंग
जो इस आस में बिखर पड़े कि
शायद कोई टुकड़ा रेलगाड़ी में लग कर 
गंतव्य पहुँच जाए।
और जानते हो गिरा कौन था?
गिरा था समाज।
©युगेश
चित्र - गूगल आभार


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