Thursday, June 21, 2018

इच्छाएँ मन मझधार रहीं

इच्छाएँ मन मझधार रहीं
न इस पार रहीं न उस पार रहीं
उम्र बढ़ी जो ज़हमत में
नादानी हमसे लाचार रहीं
कुछ पाया और कुछ खोया
गिनती सारी बेकार रही
जेब टटोला तो भरे पाए
चित्र - गूगल आभार 
बस घड़ियाँ भागम-भाग रहीं
कदम बढ़े जो आगे तो
नज़रें पीछे क्यूँ ताक रहीं
एक गुल्लक यादों का छोड़ा था
स्मृतियाँ हाहाकार रहीं
वापस लौटा,गलियाँ घूमा
सब जाने क्यूँ चीत्कार रहीं
उस बूढ़े बरगद चाचा से
अब कहाँ वही पहचान रही
कहते लज्जत वही मिठाई की है
पर कहाँ वही चटकार रही
दरीचा जिसे देख दिल ये धड़का था
अब धड़कन कहाँ बस आवाज़ रही
चलते चलते जो उस ठौर रुका
देखा इमारत शायद वही रही
माँ ने खोला दरवाज़ा तो घर पाया
पग दौड़े,आँखें नीर से भरी रही
देखा तो पाया बस थी यहीं ठहरी
वो खुशियाँ जो बेहिसाब रहीं।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}