Thursday, November 25, 2021

एक नया इंद्रधनुष

आँखों की तलहटी में
जब भर जाती हैं यादें
तो भर आती हैं आँखें
आँखें जो सवाल नहीं करती
बस ढूंढती हैं जवाब
जवाब जो सन्यासी की तरह होते हैं
बिल्कुल नंग-धड़ंग
हृदय की कोमलता से
उन्हें क्या लेना-देना
उन्हें वास्तविकता से सरोकार है
मन कई बार सच नहीं
झूठ सुनना चाहता है
जानते हुए भी कि
वो क्षण-भंगुर है
क्यूँकि उसमें होती है
आशा की किरण
जिनका इंतज़ार रहता है
आँखों की तलहटी को
जो उड़ा ले जाए
आँखों के नीर को
आसमाँ की ओर
बनाने एक नया इंद्रधनुष।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार 
                                   
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