आँखों की तलहटी में
जब भर जाती हैं यादें
तो भर आती हैं आँखें
आँखें जो सवाल नहीं करती
बस ढूंढती हैं जवाब
जवाब जो सन्यासी की तरह होते हैं
बिल्कुल नंग-धड़ंग
हृदय की कोमलता से
उन्हें क्या लेना-देना
उन्हें वास्तविकता से सरोकार है
मन कई बार सच नहीं
झूठ सुनना चाहता है
जानते हुए भी कि
वो क्षण-भंगुर है
क्यूँकि उसमें होती है
आशा की किरण
जिनका इंतज़ार रहता है
आँखों की तलहटी को
जो उड़ा ले जाए
आँखों के नीर को
आसमाँ की ओर
बनाने एक नया इंद्रधनुष।
©युगेश
चित्र - गूगल आभार |