Sunday, August 23, 2020

चम्पा का फूल

शाम जब डूबता है सूरज
तो रात के साए में
कोपलें फूटती हैं आसमान की
और निकलते हैं तारे
मैं उन फूलों को एक पहर
देख खुश नहीं हो पाता
मुझे चम्पा का फूल पसंद है
जो बिखेरता है खुशबू
जिसे न उजाले से डर लगता है
न जिसे अंधेरे की पनाह पसंद है
वो जो उन्मुक्त है
और जो शोर करता है
अपनी भीनी खुशबू से
और कहता है मैं हूँ
मेरा अस्तित्व है
मुझे ऐसा ही प्रेम चाहिए
तुम मेरे जीवन का सितारा
बन सको या न बन सको
हाँ,पर चम्पा का फूल
जरूर हो जाना।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार



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Thursday, August 13, 2020

इंसाफ का दायरा थोड़ा बड़ा हो जाता

इंसाफ का दायरा थोड़ा बड़ा हो जाता

इल्जाम बस सियासतदानों पर न आता।


अमूमन भरोसा तो है इंसाफ के ढाँचे पर

चढ़ने को पैसे लगते हैं, मैं दे कहाँ पाता।


पथरीली जमीन है, गड्ढे हैं सड़क पर

वो गाड़ी से चलते हैं, मैं चल कहाँ पाता।


बड़ी मुश्किल से पहुँचा मैं ढाँचे के अर्श पर

जो बैठा है, मुजरिम है, इंसाफ कर कहाँ पाता।

©युगेश 

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