कहती है वो आँखों से
और देख कनखिया सुनती है
हाथ फेरती देख हवा में
जाने क्या सपने बुनती है।
अभी अभी ये रोग हुआ
या रोग पुराना लगता है
आँख खोल कर सोती है वो
कुछ नया फसाना लगता है।
दिल के तह, झाँक के देखो
जाने कितनी गहराई है
पूछे उससे बात जो कोई
बस मंद-मंद मुस्काई है।
दिल की बातें दबी ज़ुबाँ पर
और कहने से घबराई है
बिना हवा के आँचल उड़ता
कैसे चलती पुरवाई है।
तेरे इन अधरों पर तैरते
बातों को मैं तौल गया
रद्दी बिकती एक रुपए की
मैं तो बिल्कुल बे-मोल गया।
प्रेम रूप की परिभाषा
ये कोई बता क्या पाया है
तेरे मेरे बीच जो पनपा
यही, कृष्ण ने समझाया है।
©युगेश