जो उनके खेलने की उम्र में उनसे खेल जाते हैं
बताइये इतनी दरिंदगी कहाँ से लाते हैं
नासमझ ने गुड्डे को गिर जाने पर बड़े प्यार से सहलाया था
वो जो सबकी नाक में दम कर देता था
उसके चेहरे की शरारत को गुम क्यूँ पाते हैं
व्यस्त ज़िन्दगी से वक़्त निकालिये साहब
बच्चे मासूम हैं,सब कहाँ समझ कहाँ कह पाते हैं।
बच्चे छोटे होते हैं पर एहसास बड़े होते हैं
पर तो हमने अपने कतरे हैं उनके तो खूब होते हैं
अभी तो उम्र है,आसमाँ उड़ान का खुला होना चाइए
ज़िम्मेदारी हमारी थी,ये चील कहाँ से आते हैं।
पौ फटते ही आसमान खुला होना चाइए
थोड़ी जिम्मेदारी हमारी थोड़ी आपकी होनी चाइए
हम फिर से गुड्डे-गुड़ियों के चेहरे पर मुस्कान चाहते हैं
वो कहते हैं वो खुला आसमान चाहते हैं।
©युगेश
Greetings from the UK.
ReplyDeleteThank you. Love love, Andrew. Bye.
Greetings from India Andrews :)
DeleteTarif K liye shabd nhi h bhut achhi kawita
ReplyDeleteThank you :)
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