Thursday, September 19, 2013

रेलवे टिकट

 बीते दिन थे कई
जब से होकर आया मैं घर
छुट्टी हुई थी कॉलेज में
मैं भागे-भागे पहुँचा रेलवे टिकट-घर
भीड़ बरी थी टिकेट-घर में
आठ में से खिड़कियाँ खुली थी केवल छह
पीछे मुड़ा था मैं क्यूँकि
वहाँ लिखा था भारत माता की जय
ट्रेन एक घंटे में थी
लाइनें लम्बी बड़ी थी
भीड़ देखकर लगा मानो
हमारी छुट्टी  अधर में लटकी पड़ी थी
पर फिर भी मैंने हिम्मत जुटाया
एक उम्मीद भरी लम्बी सांस लेकर
हमने भी अपनी उपस्तिथि को
सामने वाली लाइन में दर्ज कराया
भीड़ बड़ी थी सो
लाइन धीरे-धीरे चल रही थी
पर तखलीफ़ तो इस बात की थी
की आगे घुसपैठ चल रही थी
मैंने ज्यों ही आवाज़ उठाने को
अपनी आँखें तरेरी
सामने लगी पट्टी पर
मेरी नज़र पड़ी
अब घंटा बचा था आधा और
पट्टी पर लिखा था महिलाएँ एवं बुजुर्ग
अब तो हमारी हालत ऐसी थी
मानो मोर के झुण्ड में सुतुरमुर्ग
तब मैंने आगे और पीछे वालों को टटोला
उद्देश्य गलत न था
आगे-पीछे पुरुष ही खड़े थे
मैं तो सही लाइन में ही घुस था
फिर मैंने सोचा
अब क्या करूँ
खैर ! इतनो को फर्क नहीं पड़ता
तो मैं क्यूँ डरूं
फिर कानों में एक मीठी सी आवाज़ आई
पीछे मुड़ा तो देखा
एक खुबसूरत लड़की खड़ी थी
उसने कहा मेरे लिए एक
टिकट ले दीजियेगा
मेरा जवाब तो जग-जाहिर है
पर फिर भी हमने अपनी उत्तेजना को दबाया
और,धीरे से कहा - "ठीक है"
अब तक तो सब ठीक था
पर आगे मुड़ कर देखा तो
स्तिथि अजीब थी
आगे तो द्वंद चल रहा था
एक स्त्री लाइन में घुस रही थी
और एक पुरुष उसे रोक रहा था/
स्त्री ने कहा - ये महिलाओं की लाइन है
उत्तर आया बहुत देर से खड़े हैं
तभी हवालदारजी आ धमके
और कहा -  औरत हो या बूढ़े हो ?
व्यक्ति स्तब्ध था- न बोले तो टिकेट जाये
और हाँ बोले तो पुरुषार्थ  जाये /
उसके पीछे मैं ही खड़ा था
ट्रेलर देख मैं तो पहले ही डरा था
गृह-प्रेम छोड़ मैंने अपने पुरुषार्थ को गले लगाया
और लाइन छोड़ मैं तो निकल आया
अब तो देर बड़ी थी पर खुसी हुई मुझे
क्यूंकि ! अब वह लड़की लाइन में खड़ी थी/
मैंने पास जाकर पूछा -
मेरी टिकेट ले दीजिएगा /
उत्तर आया -"आमि  पटना जाक्षी /"
मैंने कहा-" आमि चन्द्रपुरा "/
पर शायद कुछ ग़लतफ़हमी थी
जो उसने कहा वह वो न कहकर
कुछ और कहना चाहती थी/
मैंने खुद को संभाला कहा कुछ
समझिये फिर कुछ कहिये
मुझ पर मानो पहाड़ सा टूट पड़ा
मेरे घर जाने के कार्यक्रम को गहरा झटका लगा
फिर अंतर-आत्मा  से आवाज़ आई/
कहा- बेटा ! बेटिकट कर ट्रेन पर चढाई/
बसते को कंधे पर टाँगकर
मैंने प्लेटफार्म पर कदम जमाया
इतनी परेशानी के बाद
कुछ तो अच्छा दिखे मैंने
चारो तरफ नज़र घुमाया
पर आज तो दिन ही बुरा था
इधर-उधर देखा तो
दो-चार काले कोर्ट वाला पशु
यहाँ वहां विचरण कर रहा था /
बस फिर क्या मेरे गृह-प्रेम
पर फिर ग्रहण लग गया
और बस्ता उठाकर मैं
फिर लाइन में लग गया/
ट्रेन अब तक  स्टेशन पर आ चुकी थी
मैं टिकटघर तक पहुँच ही चूका था /
पर मेरी दुहाई काम न आई,
इधर टिकेट कटी और उधर ट्रेन ने की चढाई/
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