Tuesday, November 6, 2018

दिवाली,पटाखे और कोर्ट

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का फरमान आया कि दिल्ली में पटाखे केवल दिवाली के दिन 8-10 बजे तक जलेंगे।ऐसे में दिन-दुनिया से अनजान एक अबोध बालक ने ताबड़-तोड़ बम फोड़े।इस कृत्य से दिल्ली के प्रदूषण का पारा जितना न चढ़ा उस से ज्यादा पड़ोसी का चढ़ गया और हो गयी complaint।अब बच्चे तो भोले हैं तो उनकी क्या भूल तो पुलिस पिता को पकड़ ले गयी।रिहाई तो करवा ली लेकिन अब सदमें में हैं दफ़्तर जाएँ,दिवाली मनाएँ या बच्चे को समझाएँ।वैसे ऐसे ही परिस्थितियों में पड़ोसी की पहचान होती है।ऐसे में पटाखे मौसम को देख कर नहीं पड़ोसी देख कर फोड़े।
शुभ दिपावली :)


*दिवाली,पटाखे और कोर्ट*
मुख़्तसर फ़साना कुछ यूँ हुआ
पटाखे छोड़े मुन्ना ने
गिरफ्तार मुन्ने का बाप हुआ
जी हाँ,घटना यह शत-प्रतिशत सत्य है
पड़ोसी ने लिखाई जो रपट है
अब मुन्ना सुप्रीम कोर्ट के
दिशा-निर्देश से अनजान था
बस 8 से 10 तक दिवाली में पटाखे छूटेंगे
चित्र-गूगल आभार
ऐसा कोर्ट का फरमान था
इन बातों से मुन्ने को क्या सरोकार था
गली में फैला पटाखों का बाज़ार था
मुन्ने ने पटाखे लिए दो-चार
गली में कर दी आतिशबाज़ी जोरदार
इतने में पड़ोसी भड़क गया
दिवाली की सफाई का गुस्सा
बच्चे पर फुट गया
बोला तेरे बाप की गली है
यहाँ पटाखे फोड़ता है
बच्चा जाट था सो फुट पड़ा
बोला बाप पर जाता है
रुक मुन्ना दो-चार बम और ले आता है
न मुन्ने को खबर हुई न बाप को
खबर पहुँची चौकी के सरदार को
पापा दफ़्तर से बड़े खुशी से 
बस्ता समेट रहे थे
साथ में मिठाई पड़ी थी
द्रूतगति से पहुँची पुलिस की गाड़ी भी
उनके इंतज़ार में ही खड़ी थी
धनतेरस में धातु की कुछ वस्तु तो न ली
बेटे की कृपा से धातु की हथकड़ी जरूर मिली
पत्नी से पूछा अपना ही बच्चा है
अर्धांगिनीजी ने हामी भरी
दिवाली के पूरे खर्च वो जोड़ आए
उसी रकम से दण्ड भर खुद को छुड़ा पाए
बोले मुन्ना से बेटा अब से हम 
बिल्कुल green दिवाली मनाएँगे
और अखबार तो बेटा हम आज से ही
तुम्हें जरूर पढ़ाएँगे।
©युगेश
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Thursday, September 20, 2018

सैनिक की अर्थी (भाग २)

सुना है सुबह तक
मैं अपने गाँव पहुँच जाऊँगा
चित्र - गूगल आभार














































मैं जिस क्षितिज का सूरज था
चित्र - गूगल आभार 
कल अस्त भी वहीं हो जाऊँगा
सुबह 5 बजे मैं गाँव पहुँचा
लोगों को देख ऐसा लगा
मानो गाँव सोया ही नहीं था
उस भीड़ में हर चेहरे को
मैं पहचानता था
मुझे वो चाचा भी दिखे
जिनकी दुकान से मैं बचपन में
टॉफियाँ चुराया करता था
और हर बार वो मुझे पकड़ लेते थे
आज उन्होंने अपने आंसू
चुराने की कोशिश की
पर आज मैंने उन्हें पकड़ लिया
बोलने को बहुत कुछ है मेरे पास
मेरे वो दोस्त भी खड़े हैं
जिनके साथ मैंने घूमने की
कितनी ही योजनाएँ बनाई थी
जो कभी पूरी न हो सकीं
इसलिए शायद वो साथ घूम रहे थे
कि मेरी आखरी यात्रा में ही सही
वो इच्छा भी पूरी हो जाए
मैं हर उस गली से घूमा
एक एक मिट्टी का कण
मुझे पहचान रहा था
और मैं उन्हें
मैं घर से दूर जरूर था
पर जुदा कभी नहीं
अचानक हवा का झोंका
मुझ पर पड़े तिरंगे को छूता चला गया
मानो पूछना चाह रहा हो
फिर कब आना होगा
मैं जवाब सोच भी न पाया था
कि दूर रुदन की आवाज़ आयी
बिल्कुल जानी पहचानी सी
दूर दो बिम्ब दिखे
वो मेरी पत्नी और माँ थी
दोनों को देख मेरा हृदय चीत्कार गया
ऐसी असह्य पीड़ा मुझे कभी नहीं हुई
वो मेरे मृत शरीर को अनावृत कर
ऐसे लिपटी मानो एक छोटा बच्चा
अपने खिलौने को जोर से पकड़ कर
अपने पास रखने का
निरर्थक प्रयास करता रहता है
आज एक और छोटे बच्चे ने
अपने माँ के आँचल को जोड़ से पकड़ा था
मुझे अब अंत्येष्टि चाहिए थी
उस गोली ने मुझे जितना
क्षत-विक्षत नहीं किया था
उस से कहीं ज्यादा इस दृश्य ने
मेरी आत्मा को किया था
कि तभी खुद को संभालते हुए
उस गर्वीली योषिता ने कहा
अपने पिता की तरह बनोगे
बच्चे ने तुतलाते हुए कहा हाँ
उसके अस्पष्ट शब्द मुझे
स्पष्ट निर्देश दे गए
कि अब मैं सो सकता था
एक बहुत लंबी नींद
चैन से,अभिमान से।
©युगेश

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सैनिक की अर्थी (भाग १)

मैं एक सैनिक हूँ


चित्र - गूगल आभार 







वही,जिसकी पहचान
उसकी वर्दी से होती है
और हम मरते नहीं
हम शहीद होते हैं
मैं भी कल ही शहीद हुआ
मुझे इस बात का गुरुर है
कि भारत माँ के लिए जो कुछ
कर सकता था मैंने किया
अफ़सोस बस ये है
कि मेरी वो माँ........
मेरा गला रुँध जाता है
वो औरत कितनी मज़बूत है
मैंने सुना है कि
मेरे शहीद पिता को देखकर
उसने बड़ी हिम्मत से
अपने रंगीन लिबास को निकाल कर
सादा लिबास ओढ़ लिया था
वो टूटी थी पर बिखरी नहीं
ताकि मैं ना बिखर जाऊँ
पर अब इतना आसान न होगा
कि वो मज़बूत औरत
अपनी बहू के लिबास को सादा कर दे
सुना है घर में खबर जा चुकी है
पर पत्नी को बस इतना पता है







चित्र - गूगल आभार 
कि मुझे थोड़ी चोट लगी है
पर मैं वापस आ रहा हूँ
चोट लगना हमारे लिए बड़ी बात नहीं
वो बस खुश है
एक सुकून सा है चेहरे पर
कि घर के छोटे सिपाही को
अब झूठा दिलासा नहीं देना होगा
पर अब तक वह झूठ
एक नितांत सत्य बन चुका है
और मुझे तिरंगे में लपेटा जा रहा है
सुना है देश में अब हर किसी को
तिरंगे से लपेट रहे हैं
अच्छी बात है
इस से तिरंगे की इज्जत कम नहीं होती
हाँ,पर हमारी जरूर होती है
पर इतना सोचने का वक़्त कहाँ है
मेरी अंतिम यात्रा उन्हीं गलियों से गुज़रेगी
जहाँ मैंने चलना भागना सिखा था
मेरी पहली और अंतिम यात्रा उसी पथ पर
फर्क बस ये होगा
पहले माँ पीछे भागती थी
अब एक हुज़ूम पीछे होगा..........
©युगेश

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Thursday, August 30, 2018

मंज़िल मिली किनारा न मिला

मंज़िल मिली किनारा न मिला
मिला साथ लोगों का तुम्हारा न मिला
चित्र - गूगल आभार 
दरख़्त से गिरे पत्ते की तरह
जो उड़ना चाहा हवाओं का सहारा न मिला
जुम्बिश वस्ल की तुम क्या जानो
जब चाहा तब न मिला
जब न चाहा तब जा कर मिला
राह चला जो तुमने दिखाई
कभी ठोकर खा कर चला
कभी ठुकरा कर चला
मंसूब करूँ अपनी तरक्की तेरे नाम
जो भी गम दिए तूने
सारे के सारे,जज़्ब कर चला
आई जो मंज़िल पास मेरे
पीछे मुड़ तुझे देखकर चला
रंजिश न रह जाए कोई
इसलिए यारों जो मैं चला
दुआ सलाम करता चला।
©युगेश

मंज़िल मिली किनारा न मिला(YOUTUBE LINK)
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Saturday, August 4, 2018

HAPPY FRIENDSHIP DAY

Somehow we met
Somehow we became friends
We may not be jai-veeru
But we sure have set trends
So you remember the drinks
Oh please don't spill the beans
You know it's facebook 
And for my mother 
I am still a teen
photo courtsey:google images
U have my secrets
I remember your sins
You don't have to worry
Together we always came clean
Some I met in childhood
Some in the college days
And some sudden and outright
Oh these coincidences make life
Remember the good old days 
Remember the pain
Reconciliation after the fight
We sure belong to same clan
Life has been a roller coaster ride
Thanks for being always by my side
Things have changed, we grew up
and drifted away
Job,study whatever the reason you say
It's my life but you will always have a say
Do keep disturbing keeping all the ego at bay
Remember whenever we meet we will say yay
Till then HAPPY FRIENDSHIP DAY :D
©Yugesh
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Monday, July 23, 2018

दिल के किराएदार

बकौल मोहब्बत वो मुझसे पूछता है
दिल के मकान के उस कमरे में
क्या?अब भी कोई रहता है।
थोड़ा समय लगेगा,ध्यान से सुनना
बड़ी शिद्दत से बना था वो कमरा
कच्चा था पर उतना ही सच्चा था
उसे भी मालूम था कि उसकी
एक एक ईंट जोड़ने में मेरी
चित्र - गूगल आभार 
एक एक धड़कन निकली थी
इकरारनामा तो था
पर उस पर उसके दस्तख़त न हो पाए
उसे कोई दूसरा कमरा पसंद था
मेरा कमरा थोड़ा कच्चा था
सो अब सीलन पड़ने लगी थी
थोड़ी दरारें भी आ गईं थी
लोगों के कहने पर थोड़ी
मरम्मत करवाई है
सीलन और दरारें थोड़ी भरने लगी हैं
अब मैं वो कमरा किराये पर लगाता हूँ
किरायेदार भी अच्छे मिल जाते हैं
पर किसी में ऐसी बात नहीं मिली
कि कमरे को मकान से जोड़ दे
दरारे कम हो गई हैं
पर अब भी कुछ बाकी हैं
हाँ, मैंने इकरारनामे की कुछ शर्तें
बदल जरूर दी हैं
किराया ठीक ठाक मिल जाता है
तकलीफ अब उतनी नहीं होती।
©युगेश

https://youtu.be/M2LG7xv2y7g
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Thursday, July 12, 2018

जब मेरी बच्ची रोती है

आँखें मूँद इंसानियत जाने कहाँ सोती है
चित्र - गूगल आभार 
जीते जी मर जाता हूँ मैं जब मेरी बच्ची रोती है|
क्या कुछ नहीं बीता नाज़ुक सी उस जान पर
माँस के इस ढांचे में अब कहाँ वही बच्ची होती है।
छलनी-छलनी हो जाता जिगर मेरा,जब जिगर के टुकड़े से
कहाँ छुआ,कैसे हुआ ये तफ्तीश होती है।
कमाल है समाज,मुझे सोच पर तरस आता है
जुर्म करता है कोई और चेहरा मेरी बच्ची ढकती है।
हुजूम सा आया है सड़कों पर खबर है मुझे
अफ़सोस!ये सबकुछ हो जाने के बाद होती है।
हाल किसी ने न जाना,बस कौम पूछते रह गए
सियासत है जनाब,अफ़सोस ऐसी ही होती है।
गुरुर अब भी उतना हीं है,मुझे अपनी बच्ची पर
आदमी ही हूँ,कौम जिसकी बस एक पिता की होती है।
©युगेश

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