Thursday, September 20, 2018

सैनिक की अर्थी (भाग २)

सुना है सुबह तक
मैं अपने गाँव पहुँच जाऊँगा
चित्र - गूगल आभार














































मैं जिस क्षितिज का सूरज था
चित्र - गूगल आभार 
कल अस्त भी वहीं हो जाऊँगा
सुबह 5 बजे मैं गाँव पहुँचा
लोगों को देख ऐसा लगा
मानो गाँव सोया ही नहीं था
उस भीड़ में हर चेहरे को
मैं पहचानता था
मुझे वो चाचा भी दिखे
जिनकी दुकान से मैं बचपन में
टॉफियाँ चुराया करता था
और हर बार वो मुझे पकड़ लेते थे
आज उन्होंने अपने आंसू
चुराने की कोशिश की
पर आज मैंने उन्हें पकड़ लिया
बोलने को बहुत कुछ है मेरे पास
मेरे वो दोस्त भी खड़े हैं
जिनके साथ मैंने घूमने की
कितनी ही योजनाएँ बनाई थी
जो कभी पूरी न हो सकीं
इसलिए शायद वो साथ घूम रहे थे
कि मेरी आखरी यात्रा में ही सही
वो इच्छा भी पूरी हो जाए
मैं हर उस गली से घूमा
एक एक मिट्टी का कण
मुझे पहचान रहा था
और मैं उन्हें
मैं घर से दूर जरूर था
पर जुदा कभी नहीं
अचानक हवा का झोंका
मुझ पर पड़े तिरंगे को छूता चला गया
मानो पूछना चाह रहा हो
फिर कब आना होगा
मैं जवाब सोच भी न पाया था
कि दूर रुदन की आवाज़ आयी
बिल्कुल जानी पहचानी सी
दूर दो बिम्ब दिखे
वो मेरी पत्नी और माँ थी
दोनों को देख मेरा हृदय चीत्कार गया
ऐसी असह्य पीड़ा मुझे कभी नहीं हुई
वो मेरे मृत शरीर को अनावृत कर
ऐसे लिपटी मानो एक छोटा बच्चा
अपने खिलौने को जोर से पकड़ कर
अपने पास रखने का
निरर्थक प्रयास करता रहता है
आज एक और छोटे बच्चे ने
अपने माँ के आँचल को जोड़ से पकड़ा था
मुझे अब अंत्येष्टि चाहिए थी
उस गोली ने मुझे जितना
क्षत-विक्षत नहीं किया था
उस से कहीं ज्यादा इस दृश्य ने
मेरी आत्मा को किया था
कि तभी खुद को संभालते हुए
उस गर्वीली योषिता ने कहा
अपने पिता की तरह बनोगे
बच्चे ने तुतलाते हुए कहा हाँ
उसके अस्पष्ट शब्द मुझे
स्पष्ट निर्देश दे गए
कि अब मैं सो सकता था
एक बहुत लंबी नींद
चैन से,अभिमान से।
©युगेश

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2 comments:

  1. इससे अच्छा सम्मान एक सैनिक का हो ही नहीं सकता दोस्त,पढ़कर आँखे गीली हो गईं। इससे ज्यादा लिखने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मित्र :)

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