Thursday, September 20, 2018

सैनिक की अर्थी (भाग १)

मैं एक सैनिक हूँ


चित्र - गूगल आभार 







वही,जिसकी पहचान
उसकी वर्दी से होती है
और हम मरते नहीं
हम शहीद होते हैं
मैं भी कल ही शहीद हुआ
मुझे इस बात का गुरुर है
कि भारत माँ के लिए जो कुछ
कर सकता था मैंने किया
अफ़सोस बस ये है
कि मेरी वो माँ........
मेरा गला रुँध जाता है
वो औरत कितनी मज़बूत है
मैंने सुना है कि
मेरे शहीद पिता को देखकर
उसने बड़ी हिम्मत से
अपने रंगीन लिबास को निकाल कर
सादा लिबास ओढ़ लिया था
वो टूटी थी पर बिखरी नहीं
ताकि मैं ना बिखर जाऊँ
पर अब इतना आसान न होगा
कि वो मज़बूत औरत
अपनी बहू के लिबास को सादा कर दे
सुना है घर में खबर जा चुकी है
पर पत्नी को बस इतना पता है







चित्र - गूगल आभार 
कि मुझे थोड़ी चोट लगी है
पर मैं वापस आ रहा हूँ
चोट लगना हमारे लिए बड़ी बात नहीं
वो बस खुश है
एक सुकून सा है चेहरे पर
कि घर के छोटे सिपाही को
अब झूठा दिलासा नहीं देना होगा
पर अब तक वह झूठ
एक नितांत सत्य बन चुका है
और मुझे तिरंगे में लपेटा जा रहा है
सुना है देश में अब हर किसी को
तिरंगे से लपेट रहे हैं
अच्छी बात है
इस से तिरंगे की इज्जत कम नहीं होती
हाँ,पर हमारी जरूर होती है
पर इतना सोचने का वक़्त कहाँ है
मेरी अंतिम यात्रा उन्हीं गलियों से गुज़रेगी
जहाँ मैंने चलना भागना सिखा था
मेरी पहली और अंतिम यात्रा उसी पथ पर
फर्क बस ये होगा
पहले माँ पीछे भागती थी
अब एक हुज़ूम पीछे होगा..........
©युगेश

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