Tuesday, May 29, 2018

धीरे धीरे जो सुलगी

धीरे धीरे जो सुलगी वो आग हो गई
 चित्र - गूगल आभार 
हमने लिखने को जो उठाई कलम
वो आज किताब हो गयी
उनके जुल्फों की खुशबू में हम यूँ बहके
की जो अब तक न चढ़ी आज शराब हो गई।
आज आबशार जो देखा मैंने नदी के किनारे
उनकी जुल्फों से रिस कर रुकसार पर आते हुए
जुस्तजू का आलम ये हुआ
की खुदा से आज बगावत हो गयी
क्या कहूँ बस तब से उनकी इबादत हो गई।
कई बार उनकी मुस्कराहट के बारे में सोचा
जब भी सोचा चेहरे पर मुस्कान आ गयी
तारीफ़ करना हमने सीखा नहीं
दीदार-e-पाक क्या हुआ पन्नो पर स्याही आ गयी
वाह-वाही अपने ग़ज़लों की हमने पहले न सुनी
जिक्र जो उनका हुआ
अल्फ़ाज़ों में ताकत करिश्माई आ गयी।
©युगेश
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4 comments:

  1. Beautiful, dil khush ho gaya.

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  2. Jan kr haal e dil haal esa hua k mahfil sharmsar ho gyi����

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  3. Jan kr haal e dil haal esa hua k mahfil sharmsar ho gyi����

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