तुझे क्या पता
ये वक़्त
हमने कैसे बिताया
था/
कि पगडंडी पर पड़ा
हर एक काँटा
हमने अपने पैरों
तले पाया था/
अब
सूख चले थे/
कि तू आएगा
यादों की नई
बसंत लेकर
ये सोच हमने
उन्हे अब तक
संजोया था/
कि तेरी वो सूखी नजमें अब
भी
मेरे ज़हन मे
ज़िंदा हैं/
कि तेरे ये
मुरझाए ख़त
आज भी मुझे
सोने नहीं देते/
ठीक कहा तूने सूख गयी थी
मेरे पलकों की
नमी
जो क्षण कुछ
और हो जाते
तो शायद देख
नही पाती/
कि समेट ले
मुझे अपनी आगोश में
कि कब से
इस क्षण को
जीने के लिए
हर पल मरी
हूँ/
कि बुझ ना
पाएगी प्यार की
ये लौ
आख़िर इतना कुछ
खोकर तुझे पाया
है हमने/
©युगेश
©युगेश
खूबसूरत विचार...खूबसूरत शब्द संयोजन...
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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