Saturday, April 6, 2013

तुझे क्या पता ये वक़्त


तुझे क्या पता ये वक़्त
हमने कैसे बिताया था/
कि पगडंडी पर पड़ा हर एक काँटा
हमने अपने पैरों तले पाया था/
कि तेरे साथ बिताए लम्हों के पत्ते
अब सूख चले थे/       
कि तू आएगा यादों की नई बसंत लेकर
ये सोच हमने उन्हे अब तक संजोया था/
कि तेरी वो सूखी नजमें अब भी
मेरे ज़हन मे ज़िंदा हैं/
कि तेरे ये मुरझाए ख़त
आज भी मुझे सोने नहीं देते/
ठीक कहा तूने सू गयी थी मेरे पलकों की नमी
जो क्षण कुछ और हो जाते तो शायद देख नही पाती/
कि समेट ले मुझे अपनी आगोश में
कि कब से इस क्षण को जीने के लिए हर पल मरी हूँ/
कि बुझ ना पाएगी प्यार की ये लौ
आख़िर इतना कुछ खोकर तुझे पाया है हमने/
©युगेश
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3 comments:

  1. खूबसूरत विचार...खूबसूरत शब्द संयोजन...

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  2. बहुत सुंदर....

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