है ओत-प्रोत ये मन मेरा
कितनी सुंदर तेरी काया
हुआ अच्छम्भित मन मेरा
तू सच्चाई या कोई माया
नशें में हूँ पर मत समझ
ये नशा है उस प्याले का
उसका असर हम पे क्या हो
जो दीवाना महखाने का
ये नशा तो है तेरा प्रिये
जिसने ये जादू कर डाला
थी छुईमुई शरमाई तू
जो डाली मैने बैयाँमला
बात ये मैने मानी थी
पर टूट गया मेरा वादा
हुआ असर था तुझ पर भी
पर हुआ नशा मुझको ज़्यादा
मधुर नशीला था वह क्षण
तू समाई मेरे आलिंगन मे
एहसास हुआ था कण-कण
पुस्प खिले हृदय आँगन
मे
उस दूर क्षितिज तक मैने
खुद को अकेला पाया था
जो क्षीर हुआ मेरे जिस्म से
वो तेरा कोमल साया था
पर देख मैं जीता हूँ
की तू कल फिर मिलने आएगी
देख रुधिर से मेरे ही
माँग तेरी सज पाएगी
कहने दो जो कहता है
रोष नहीं उससे कोई
वो बेचारा क्या जाने
प्यार से सच्चा है कोई
हुआ कण-कण मेरा तेरा
ये बोल नहीं सच्चाई है
है खुदा गवाह मेरा जब
जब तेरी माँग सजाई है
हुआ सरस जीवन मेरा
ये साथ जो सच्चा पाया है
है अच्छंभित मन मेरा
तू सच्चाई या माया है
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteएकदम परिपक्व रचना.....
and pls remove word verification...
अनु
मुझ जैसे नये कवि के लिए आपकी टिप्पणी और सराहना किसी उपहार से कम नहीं / बहुत-बहुत शुक्रिया.........:)
Delete