Monday, May 17, 2021

मेरे घर मेरी भाभी आई।

तोड़ वेदना की सांकल को
गर्मी में जैसे बरखा आई
घर की चौथी नींव जोड़ने
मेरे घर मेरी भाभी आई।

झरोखे से झांक रहा है आलय                       
यूँ सजे-धजे से आया कौन
माँ के चेहरे पर इंद्रधनुष सा
आह्लाद बनकर यूँ छाया कौन।

लुटा रही वो हाथों से ममता
कोई कसर नहीं रह जाती है
उन्माद सा क्यूँ है आँखों में
वो बेटी पाकर इतराती है।

नहीं मिलन ये दो लोगों का
कितनों का जुड़ता नाता है
वृक्ष-कुटुंब सघन तब होता
जब कोई बाहें फैला अपनाता है।

बाट जोहती घर की तुलसी
आगे इसको सींचे कौन
सिंदूर-रोली मंदिर की शोभा
घर की शोभा बोलो कौन।

वचन दिए जो सात हैं उसने
भैया मेरा निश्चय ही निभाएगा
आपकी आँखों का हर आंसू
उसकी आँखों से होकर जाएगा।

देख रहे हैं वो भी सब
उनका मन भी हरषाया है
माँ के हाथों से पिता ने
कुशलक्षेम भिजवाया है।
©युगेश 




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Friday, April 16, 2021

*पृथा और निष्प्राण कर्ण*

निस्तेज हुआ था सूर्य तथापि
धर्म विजय का प्रणेता था
जो तीर चीर गया कंठ को
क्या? साधारण वो योद्धा था।
फटा उर कुंती का तब
पृथा परस्पर प्रस्फुटित हुई
कर्ण कैसे पूछे धर्मक्षेत्र से
ममता क्यूँ कुंठित हुई।
न कवच था न कुंडल थे
पर तेज़ सूर्य के जैसा था
रोक सके न कोई उसको
क्यूँ, धरती माँ ने रोका था।
नियति के कुचक्र में
कैसे कर्ण फँस गया
धरती माँ का हृदय फटा
पहिया वहीं पर धँस गया।
विजय अमृत था सदृश
किसी के चेहरे पर ग्लानि
पाण्डव उत्सव को आतुर
कुंती के आँखों पानी।
आँखों के सामने पिटारी
ठहर गयी पृथ्वी सारी
उस भाग्यहीन की किलकारी
और पृथा ठहरी बेचारी।
पर आज वेग में ओज था
माँ के सर एक बोझ था
आँसू रहते न आँखों में स्थिर
विष्मीत धर्मराज युधिष्टिर।
पर कोई उन्हें न टोक सका
माँ को कोई न रोक सका
वात्सल्य जीवन भर का
काला पड़ गया था मनका।
क्षत-विक्षत वो पड़ा रहा
मानो ज़िद से वो अडा रहा।
©युगेश
.                         चित्र - गूगल आभार

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Friday, March 12, 2021

आँखों का फ़ितूर

मेरी आँखों का फ़ितूर है
या कोई तो ज़रूर है।
ये दिन में शाम क्यूँ हुई
ये ज़ुल्फ या धतूर है।
हवा बही हर ओर से
झटकी लट जो ज़ोर से।
दिन को ढलने दो यहीं
बैठो जरा ग़ुरूर से।
थक जाने दो शाम को
अलसाए आसमान को।
ये तारे टिम-टिमाएँगे
ये आसमाँ सजाएँगे।
ये रात जगमगाएगी
लेकर चुनर हुज़ूर से।
बैठो जरा ग़ुरूर से
बैठो जरा ग़ुरूर से।
पंछी क्यूँ ठहर गए
दिन गया,पहर गए।
न टोह उनको आज की
न किसी के काज की।
आह भर रही है चांदनी
मद्धम हो रही हवा।
मैं पास उसको खींचता
वो खीझती जरा-जरा।
रात हुई तो शोर है
देखो जोर-जोर है।
वो बस मुझको देखती
मैं देखता, कोई और है?
जुगनू चमकने लगे
चुनर आँखों से सरकने लगे।
शाम आग़ोश में रात की
उसने जाने की बात की।
प्रेम का अर्थ गूढ़ है
मिलना-बिछड़ना जरूर है।
समझ सके तो प्रेम क्या?
जो ना समझे तो प्रेम है।
©युगेश 

                                                       

चित्र - गुगल आभार

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Friday, November 20, 2020

पाँच सौ का एक नोट

वोट की कीमत
नहीं आँकी जा सकती
इसमें स्वाभिमान है
संविधान का सम्मान है
कहते हैं शिक्षाविद
लेकिन विधिवत शिक्षा
पहुँचती कहाँ है लोगों तक
न पहुँचते है शिक्षाविद
और भूख स्वतः जागृत होती है
जैसे वोट का अधिकार
हर पाँच साल के पार
लिए पार्टी का झंडा
अधनंगा पहने एक लंगोट
कहता है फलाँ जिंदाबाद
अपने भविष्य का गला घोंट
पता है कितने का एक वोट
बस! पाँच सौ का एक नोट।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार 


 

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Saturday, September 26, 2020

*आज की ताजा खबर*

आज की ताज़ा खबर
मीडिया की पैनी नज़र
सवाल करती, चीखती, गुर्राती
कभी अपने कमीज की बाहें तानकर
तो कभी आँखें गुरेरकर
कहती, ये सच है
और हम मान भी लेते
पर नहीं मानता वो आदमी
जो सड़क पर बेतहाशा चला जा रहा है
तो उस जुझारू पत्रकार ने पूछ लिया
आपकी इस घटना पर क्या प्रतिक्रिया है
वो आदमी चुप रहा
चलता रहा
और न ही रुकी मीडिया
पूछती रही
पर जवाब कोई न मिला
पर स्तम्भ इतना भी कमजोर नहीं होता
उसने झकझोरा उसे
कहा क्या तुममें आत्मीयता नहीं
या नहीं है दया
या नहीं जानते जो चला गया
उसे इंसाफ नहीं मिला
वो आदमी मुस्कुराया
एक चिट्ठी उसके हाथों में दी
और कूद गया पूल से
मीडिया ने कहा बड़ा बेवकूफ आदमी था
और फेंक दी चिठ्ठी
चिठ्ठी उड़ते हुए कैमरे के ग्लास पर जा टिकी
लिखा था "भूख"
खैर, कैमरा On नहीं था
या On नहीं किया गया?
पता नहीं
किसी ने आँखें नहीं तरेरी
न ही कमीज़ की बाहें तानी
सब सच्चे मुद्दे दिखाने में व्यस्त थे।
©युगेश

चित्र - गुगल आभार

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Saturday, September 12, 2020

*मज़ा आ रिया है*

स्थिति चिंताजनक है
देश की नहीं, देशवासियों की।
पत्रकारिता एक ठूंठ पर बंधी
बकरे के जैसी मिमिया रही है।
पूछ रही है हो क्या रिया है
पर कोई बोल नहीं रिया है।
बोल भी दे तो सुने कैसे
इतना शोर जो हो रिया है।
संभावनाएँ असीम हैं
पर TRP ये सब करा रिया है।
देश संकट में है पर
अपने को इसी में मज़ा आ रिया है।
"बकरे" के स्वामी गो लोग आजतक
काहे को चिल्ला रिया है।
अपने को ज्यादा समझ नहीं आता
पर मज़ा बहुत आ रिया है।
बहुत सन्नाटा है instagram पर
workout का video नहीं आ रिया है।
भोले बाबा के भक्त सभी हैं यहाँ पर
पर कोई क्यूँ अब नहीं बता रिया है।
भोलेबाबा आसमान से बोले
Naughty बालक मुझे क्यूँ फंसा रिया है।
देश में और भी विपदाएँ हैं
वो कोई क्यूँ नहीं बता रिया है।
भारत के घर पे चार खम्बे थे
कभी कोई उखाड़ रिया है,कभी कोई लगा रिया है।
©युगेश 

चित्र - गूगल आभार 


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Sunday, August 23, 2020

चम्पा का फूल

शाम जब डूबता है सूरज
तो रात के साए में
कोपलें फूटती हैं आसमान की
और निकलते हैं तारे
मैं उन फूलों को एक पहर
देख खुश नहीं हो पाता
मुझे चम्पा का फूल पसंद है
जो बिखेरता है खुशबू
जिसे न उजाले से डर लगता है
न जिसे अंधेरे की पनाह पसंद है
वो जो उन्मुक्त है
और जो शोर करता है
अपनी भीनी खुशबू से
और कहता है मैं हूँ
मेरा अस्तित्व है
मुझे ऐसा ही प्रेम चाहिए
तुम मेरे जीवन का सितारा
बन सको या न बन सको
हाँ,पर चम्पा का फूल
जरूर हो जाना।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार



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