Friday, March 12, 2021

आँखों का फ़ितूर

मेरी आँखों का फ़ितूर है
या कोई तो ज़रूर है।
ये दिन में शाम क्यूँ हुई
ये ज़ुल्फ या धतूर है।
हवा बही हर ओर से
झटकी लट जो ज़ोर से।
दिन को ढलने दो यहीं
बैठो जरा ग़ुरूर से।
थक जाने दो शाम को
अलसाए आसमान को।
ये तारे टिम-टिमाएँगे
ये आसमाँ सजाएँगे।
ये रात जगमगाएगी
लेकर चुनर हुज़ूर से।
बैठो जरा ग़ुरूर से
बैठो जरा ग़ुरूर से।
पंछी क्यूँ ठहर गए
दिन गया,पहर गए।
न टोह उनको आज की
न किसी के काज की।
आह भर रही है चांदनी
मद्धम हो रही हवा।
मैं पास उसको खींचता
वो खीझती जरा-जरा।
रात हुई तो शोर है
देखो जोर-जोर है।
वो बस मुझको देखती
मैं देखता, कोई और है?
जुगनू चमकने लगे
चुनर आँखों से सरकने लगे।
शाम आग़ोश में रात की
उसने जाने की बात की।
प्रेम का अर्थ गूढ़ है
मिलना-बिछड़ना जरूर है।
समझ सके तो प्रेम क्या?
जो ना समझे तो प्रेम है।
©युगेश 

                                                       

चित्र - गुगल आभार

Rate this posting:
{[['']]}

No comments:

Post a Comment