Wednesday, March 6, 2019

शहर से गुजरते हुए

शहर से गुजरते हुए
कुछ सुना सुना सा याद आया
ये वही जगह है
जहाँ सपने पूरे होते हैं
कितने पता नहीं
पर हाँ,लोग यही कहते हैं
चित्र - गूगल आभार 
छूटता है गाँव
फिर,छूट जाता है
शहर के हाँथ तंग हैं
वो सपनों की कीमत चाहता है
पोटली में बाँधे
वो सपने लेकर आता है
जो खुलती है पोटली
उड़ जाते हैं सपने
औरों के सपनों के साथ
जैसे पंछियों का झुंड
कौन आसमाँ छुएगा
कौन जमीं
कहना कठिन है
बस वक़्त जानता है
और शहर जानता है
और शहर से गुजरते हुए
यही खयाल आता है
बड़े तंग हैं हाथ इसके
ये सपनों की कीमत माँगता है।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}

Wednesday, February 13, 2019

पत्थर दिल

लोग कहते हैं
पत्थर दिल हूँ मैं
फ़क़त ये बात जानने को
तुमसे बातें करनी जरूरी थी
कि तभी सुनाई दी धड़कन
वही जो मंद पड़ गयी थी
पर तुम्हारा नाम लेते ही
उनमें भी उफान आ गया
मेरे हृदय की भी हालत
अहल्या सी ही थी,बिल्कुल पाषाण
और राम के चरण की तरह
तुम्हारे नाम ने उसमें जीवन फूँक दिया
और आज़ाद कर दिया उस श्राप से
जिसे किसी गौतम ने नहीं
बल्कि मैंने दिया था
क्यूँकि ये गलती कर बैठा था
तुमसे दिल लगाने की।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}

Monday, February 11, 2019

वैलेंटाइन और सरस्वती पूजा

वैलेंटाइन week में सरस्वती पूजा
 लंका दियो लगाए
कोई निकले विद्या की खोज में
कौनो को विद्या ही भरमाए
पूजा के ओट में उहो
चल दिये teddy day मनाए
हंस चचा रूठ गए
जा कर बगरंज दल दियो बताए
पहुँचे बाबा लेके लाठी
चित्र - गूगल आभार 
दिए बारम्बार बजाए
जब कान खींच के आँख तरेरी
मुन्ना देख उहे बौराए
सारे तुम निकले घर से
बोले देवी को परसाद चढ़ाए
तुम सारे garden में बैठे
इन देवी पर पैसे हमरे लुटाए
बिटवा बोला धीरज धरो बाबूजी
हम दिल का हाल बताए
निकले थे हम विद्या के खोज में
पर उसकी बहनी हमको भाए
अब सोच सोच कर हम हारे
कि कौनो जतन लगाए
बतलाए तब माई को अपनी
देख उसे कैसे मन हरषाए
बोली सीखो बाऊजी से
क्या क्या हथकंडे अपनाए
हमको अपना बनाने को
क्या गज़ब मार थे खाए
अरे!बस कर बस कर
बाऊजी मुन्ने को समझाए
ठिठोली फिर फूट पड़ी
बाऊजी अब किसको समझाए
गज़ब करे है ये युवा पीढ़ी
जहाँ मंदिर के छाया में
वहीं valentine day दियो मनाए।
©युगेश

Rate this posting:
{[['']]}

Sunday, December 23, 2018

शनाख़्त मोहब्बत की

शनाख़्त नहीं हुई मोहब्बत की हमारी
जज़्बात थे,सीने में सैलाब था
पर गवाह एक भी नहीं
लोगों ने जाना भी,बातें भी की
पर समझ कोई न सका
समझता भी कैसे
अनजान तो हम भी थे
चित्र - गूगल आभार 
एक हलचल सी होती थी
जब भी वो गुज़रती थी
आहिस्ता आहिस्ता
साँसें चलती थी
एक अलग सी दुनिया थी
जो मैं महसूस करता था
मेरी दुनिया में उसके आने के बाद
आज जो कठघरे में खड़ा था
सबूत दफ्न थे मेरे जिगर में
सियासत उसी की थी
काज़ी भी वही
फिर फैसला मेरा कहाँ था
एक समुद्र मंथन मेरे सीने में भी हुआ
फर्क बस ये था मैंने दोनो छोर
उसी के हाँथों में दे दिए थे
अब आब-ए-हयात निकले या ज़हराब
अब सब जायज था
सब कबूल था।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}

एक कविता मेरे नाम

बात तब की है
जब मैं धरती पर अवतरित हुआ
चौकिए मत
चित्र - गूगल आभार 
हमारा नाम ही ऐसा रखा गया
युगेश अर्थात युग का ईश्वर
अब family ने रख दी
हमने seriously ले ली
खुद को बाल कृष्ण समझ बैठे
खूब मस्ती की
पर गोवर्धन उठा नहीं पाए
पर पिताजी ने बेंत बराबर उठा ली
और कृष्ण को कंस समझ
गज़ब धोया
मतलब सीधा-साधा धोखा
नाम युगेश रख दिया
इज्जत जरा भी नहीं की
फिर हमने कहीं पढ़ा
नाम में क्या रखा है
इस बात ने और पिताजी की डाँट ने
हमारा concept ठीक कर दिया
तब से हम धरती पर
साधारण मनुष्य की तरह
विचरण कर रहे हैं।
©युगेश

Rate this posting:
{[['']]}

Saturday, November 24, 2018

आ भी जाओ कि शाम होने को है

आ भी जाओ कि शाम होने को है
दिल कहता है अंजाम होने को है
मेरे होठों से जो छलकेंगे जाम तेरे नाम
कह देना अपने होठों को
चित्र - गूगल आभार 
एक पैगाम आने को है
आ भी जाओ कि शाम होने को है।

तमाशबीन ये दरीचे सारे,बंद होने को हैं
उड़ चले परिंदे घर की ओर
आसमाँ भी कुछ खोने को है
सन्नाटा जो पसरा है,चली आओ
कि जो दिल है वो धड़कने को है
आ भी जाओ कि शाम होने को है।

जुगनू जो आएँ हैं बड़ी तलब लेकर
तुझ 'कंदील' से रोशनी चुराने को है
वाबस्तगी हवाओं से तेरी भी क्या खूब है
ठहर जाती है,तू आएगी,खबर आने को है
बस!अब और न तड़पाओ
कि आ भी जाओ कि शाम होने को है।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}

Tuesday, November 6, 2018

दिवाली,पटाखे और कोर्ट

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का फरमान आया कि दिल्ली में पटाखे केवल दिवाली के दिन 8-10 बजे तक जलेंगे।ऐसे में दिन-दुनिया से अनजान एक अबोध बालक ने ताबड़-तोड़ बम फोड़े।इस कृत्य से दिल्ली के प्रदूषण का पारा जितना न चढ़ा उस से ज्यादा पड़ोसी का चढ़ गया और हो गयी complaint।अब बच्चे तो भोले हैं तो उनकी क्या भूल तो पुलिस पिता को पकड़ ले गयी।रिहाई तो करवा ली लेकिन अब सदमें में हैं दफ़्तर जाएँ,दिवाली मनाएँ या बच्चे को समझाएँ।वैसे ऐसे ही परिस्थितियों में पड़ोसी की पहचान होती है।ऐसे में पटाखे मौसम को देख कर नहीं पड़ोसी देख कर फोड़े।
शुभ दिपावली :)


*दिवाली,पटाखे और कोर्ट*
मुख़्तसर फ़साना कुछ यूँ हुआ
पटाखे छोड़े मुन्ना ने
गिरफ्तार मुन्ने का बाप हुआ
जी हाँ,घटना यह शत-प्रतिशत सत्य है
पड़ोसी ने लिखाई जो रपट है
अब मुन्ना सुप्रीम कोर्ट के
दिशा-निर्देश से अनजान था
बस 8 से 10 तक दिवाली में पटाखे छूटेंगे
चित्र-गूगल आभार
ऐसा कोर्ट का फरमान था
इन बातों से मुन्ने को क्या सरोकार था
गली में फैला पटाखों का बाज़ार था
मुन्ने ने पटाखे लिए दो-चार
गली में कर दी आतिशबाज़ी जोरदार
इतने में पड़ोसी भड़क गया
दिवाली की सफाई का गुस्सा
बच्चे पर फुट गया
बोला तेरे बाप की गली है
यहाँ पटाखे फोड़ता है
बच्चा जाट था सो फुट पड़ा
बोला बाप पर जाता है
रुक मुन्ना दो-चार बम और ले आता है
न मुन्ने को खबर हुई न बाप को
खबर पहुँची चौकी के सरदार को
पापा दफ़्तर से बड़े खुशी से 
बस्ता समेट रहे थे
साथ में मिठाई पड़ी थी
द्रूतगति से पहुँची पुलिस की गाड़ी भी
उनके इंतज़ार में ही खड़ी थी
धनतेरस में धातु की कुछ वस्तु तो न ली
बेटे की कृपा से धातु की हथकड़ी जरूर मिली
पत्नी से पूछा अपना ही बच्चा है
अर्धांगिनीजी ने हामी भरी
दिवाली के पूरे खर्च वो जोड़ आए
उसी रकम से दण्ड भर खुद को छुड़ा पाए
बोले मुन्ना से बेटा अब से हम 
बिल्कुल green दिवाली मनाएँगे
और अखबार तो बेटा हम आज से ही
तुम्हें जरूर पढ़ाएँगे।
©युगेश
Rate this posting:
{[['']]}