Wednesday, March 6, 2019

शहर से गुजरते हुए

शहर से गुजरते हुए
कुछ सुना सुना सा याद आया
ये वही जगह है
जहाँ सपने पूरे होते हैं
कितने पता नहीं
पर हाँ,लोग यही कहते हैं
चित्र - गूगल आभार 
छूटता है गाँव
फिर,छूट जाता है
शहर के हाँथ तंग हैं
वो सपनों की कीमत चाहता है
पोटली में बाँधे
वो सपने लेकर आता है
जो खुलती है पोटली
उड़ जाते हैं सपने
औरों के सपनों के साथ
जैसे पंछियों का झुंड
कौन आसमाँ छुएगा
कौन जमीं
कहना कठिन है
बस वक़्त जानता है
और शहर जानता है
और शहर से गुजरते हुए
यही खयाल आता है
बड़े तंग हैं हाथ इसके
ये सपनों की कीमत माँगता है।
©युगेश
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