"मोहल्ले के लौंडों का प्यार अक्सर इंजीनियर डॉक्टर उठा कर ले जाते हैं।"रांझना फिल्म का ये डॉयलोग तो आपके जेहन में होगा ही।practical life में यानी की असल जिन्दगी में प्यार काफी हद तक ऐसा ही होता है।अब हर लव स्टोरी तो srk की फिल्मों की तरह होती नहीं कि पलट बोला और लड़की पलट गई।असल जिंदगी में तो लड़की छोड़ उसके माँ-बाप,भाई, पुराना आशिक़ पता नहीं कम्बख्त कौन-कौन पलट जाते हैं बस वही नहीं पलटती।इन्ही बातों पर चुटकियाँ लेते मेरी कविता :
बेकार ही लतीफे हमने उन्हें सुनाए मियाँ
वो हँसती गईं, हम कम्बख्त फँसते गए।
इस मक्कार इश्क़ ने दिवालिया निकाला हमारा
वो तोहफे सँभालती गईं,हम कम्बख्त उधार में धँसते गए।
पकड़ लिया हमे बाग में उनके साथ इश्क़ लड़ाते हुए
वो तो अब्बा के साथ हो ली,कम्बख्त हमपे डंडे बरसते गए।
इन मक्कार दोस्तों की क्या बात करूँ, कहा था ध्यान रखना
इधर हम पीटते गए,कम्बख्त एक-एक करके खिसकते गए।
सुन फराज़ को हमने भी अपने हुनर को तराशा
हमे तो शायरी अच्छी लगी,कम्बख्त ये दोस्त हँसते गए।
आज सोचा था जी भर कर उठाएँगे उनके नाज़ औ नखरे को
जिक्र जो पुराने आशिक़ का हुआ,कम्बख्त दाँत पिसते रह गए।
आज तो निकाह का पूरा इरादा कर लिया था हमने
उसने कहा रिश्ता तय हो गया है हमारा,कम्बख्त ये बात कानों को डसते गए।
आज काफी दिन बाद दिखी वो गली में अपने मुन्ने के साथ,कहा देखो मामा
काहे के मामा,वो अपने रास्ते गए,कम्बख्त हम अपने रास्ते गए।
©युगेश
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बेकार ही लतीफे हमने उन्हें सुनाए मियाँ
वो हँसती गईं, हम कम्बख्त फँसते गए।
इस मक्कार इश्क़ ने दिवालिया निकाला हमारा
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चित्र -गूगल आभार |
पकड़ लिया हमे बाग में उनके साथ इश्क़ लड़ाते हुए
वो तो अब्बा के साथ हो ली,कम्बख्त हमपे डंडे बरसते गए।
इन मक्कार दोस्तों की क्या बात करूँ, कहा था ध्यान रखना
इधर हम पीटते गए,कम्बख्त एक-एक करके खिसकते गए।
सुन फराज़ को हमने भी अपने हुनर को तराशा
हमे तो शायरी अच्छी लगी,कम्बख्त ये दोस्त हँसते गए।
आज सोचा था जी भर कर उठाएँगे उनके नाज़ औ नखरे को
जिक्र जो पुराने आशिक़ का हुआ,कम्बख्त दाँत पिसते रह गए।
आज तो निकाह का पूरा इरादा कर लिया था हमने
उसने कहा रिश्ता तय हो गया है हमारा,कम्बख्त ये बात कानों को डसते गए।
आज काफी दिन बाद दिखी वो गली में अपने मुन्ने के साथ,कहा देखो मामा
काहे के मामा,वो अपने रास्ते गए,कम्बख्त हम अपने रास्ते गए।
©युगेश
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