मैं और टमाटर अक्सर ये बातें करते हैं
टमाटर देशी होती तो स्वाद कैसा होता
उसकी चटनी बनती तो कैसा होता
चटनी में थोड़ी मिर्ची पिसी जाती
तुम थोड़ी और सस्ती होती
तो मेरी थैली पूरी भर जाती
स्वाद के साथ मैंने बजट भी देखा है
मुझे तुम्हारा बीज पसंद नहीं
सो उन्हें फुलवारी में फेंका है
स्वाद और भी दूना हो जाता है
जब जीरे का तड़का पड़ जाता है
मेरे देश में हज़ारों लोगों का गला
बस रोटी चटनी से तर जाता है।
©युगेश
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चित्र - गूगल आभार |
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