Sunday, March 13, 2022

मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ।

जब सूरज उगता है, मैं उसे नमन करता हूँ
जब वह अस्त होता है, मैं उसे प्रणाम करता हूँ
मैं माँ भारती की शिराओं में लहू बन बहता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ।

मैं देश की तररक्की का परिचायक हूँ
भारत की अर्थव्यवस्था का दिव्य भव्यभाल हूँ
मैं लिए हौंसला फौलाद का फौलाद पर दौड़ता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ

जाने कितनों के सपनों को मैं पंख लगाता हूँ
हर दिन लाखों-करोड़ों को मंज़िल तक पहुँचाता हूँ
मैं लाखों रेलकर्मियों के कंधे पर सवार चलता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ

चिनाब कभी लाल थी, उस पर अजूबे बनाता हूँ
मैं अपनी विरासत को नई तकनीक से चलाता हूँ
मैं दसो-दिशाओं में अविरल चलता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ

धमनियाँ हूँ देश की,मैं धड़कता हूँ और देश चलता है
पता नहीं, कितनों का मेरे होने से घर चलता है
"वन्दे भारत" की सौगात मैं देश को अर्पण करता हूँ
मैं भारतीय रेल हूँ, मैं निरंतर चलता हूँ
©युगेश


चित्र - गूगल आभार



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Friday, March 11, 2022

ज़िम्मेदारियाँ सवाल करती हैं

ज़िम्मेदारियाँ सवाल करती हैं
कुछ सहज कुछ असहज
मैंने असहज सवाल चुने
आज मैं अकेला खड़ा हूँ
सहजता देख मुस्कुरा रही है
ज़िम्मेदारियाँ संकुचित हैं
एक एक पाए टूट रहे हैं
जब भार कंधे पर हो
तो पहले कमर टूटती है
जब घर पर छत नहीं होती
तो बारिश भीतर होती है
मैंने छतरी खो दी है
मुझे अब भींगना है
मैंने जो तिरपाल बाँधे थे
वो असहज होकर निकल गए
मुझे घबराहट है अनहोनी की
अफसोस! यही वास्तविकता है।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार



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भारत मेरा देश महान

किसी भी व्यक्ति की आज़ादी तभी तक सुरक्षित है जब तक उसका देश आज़ाद है। देश तभी सुरक्षित रहेगा जब उसकी विरासत को बच्चों तक पहुँचाएँ। देश की संप्रभुता, देश प्रेम की नींव बच्चों के अंदर रखें। मेरे छोटे भाई सारांश ने मुझे "गणतंत्र दिवस" पर विद्यालय में बोलने के लिए एक कविता लिखने को कही थी। इस कविता की उपज इसी विचार से हुई है। 

भारत मेरा देश महान
सब करते इसका गुणगान
गाँधी की इस धरती को
सौ-सौ बार मैं करूँ प्रणाम।

उत्तर में हिमालय शोभता
दक्षिण में समुद्र पावँ को धोता
सारे धर्मों के लोग हैं रहते
नित नया त्यौहार है होता।

भारत की कश्मीर है शान
राजस्थान में देखो रेगिस्तान
अलग अलग जगहों पर देखो
मिलते नए नए पकवान।

मुझको प्यारा मेरा भारत
विश्वगुरु कहलाता था
विक्रमशिला और तक्षशिला
सुंदर इतिहास हमारा था।

नन्हा सिपाही मैं भारत का
देश के काम मैं आऊँगा
अपने अच्छे काम से मैं
भारत माँ की शान बढ़ाऊँगा।
©युगेश




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Saturday, January 8, 2022

दिल के तहखाने से

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।

हम ढूँढने चले थे रोशनी
पर मिले सब झूठे उजाले
हुए लावारिस सपने वो,
जो हमने मिलकर के पाले।

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।

मुरझाए फूल वो जो तुमने
नोटबुक के पन्नों में डाले।
प्रेम के इम्तिहान में तुम्हारे
पत्र सभी पढ़ डाले।

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।

तुमसे मिलकर हमने सारे
पैमाने बदल डाले।
च़राग़ बुझाए ढ़ूंढ़ रहे हैं
हुए थे जिसके हवाले।

दिल के तहखाने से
कुछ किस्से निकाले।
कुछ आँसू तब हमने
आँखों में सँभाले।
©युगेश 

चित्र - गूगल आभार


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Thursday, November 25, 2021

एक नया इंद्रधनुष

आँखों की तलहटी में
जब भर जाती हैं यादें
तो भर आती हैं आँखें
आँखें जो सवाल नहीं करती
बस ढूंढती हैं जवाब
जवाब जो सन्यासी की तरह होते हैं
बिल्कुल नंग-धड़ंग
हृदय की कोमलता से
उन्हें क्या लेना-देना
उन्हें वास्तविकता से सरोकार है
मन कई बार सच नहीं
झूठ सुनना चाहता है
जानते हुए भी कि
वो क्षण-भंगुर है
क्यूँकि उसमें होती है
आशा की किरण
जिनका इंतज़ार रहता है
आँखों की तलहटी को
जो उड़ा ले जाए
आँखों के नीर को
आसमाँ की ओर
बनाने एक नया इंद्रधनुष।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार 
                                   
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Saturday, October 23, 2021

कहती है वो आँखों से

कहती है वो आँखों से
और देख कनखिया सुनती है
हाथ फेरती देख हवा में
जाने क्या सपने बुनती है।

अभी अभी ये रोग हुआ
या रोग पुराना लगता है
आँख खोल कर सोती है वो
कुछ नया फसाना लगता है।

दिल के तह, झाँक के देखो
जाने कितनी गहराई है
पूछे उससे बात जो कोई
बस मंद-मंद मुस्काई है।

दिल की बातें दबी ज़ुबाँ पर
और कहने से घबराई है
बिना हवा के आँचल उड़ता
कैसे चलती पुरवाई है।

तेरे इन अधरों पर तैरते
बातों को मैं तौल गया
रद्दी बिकती एक रुपए की
मैं तो बिल्कुल बे-मोल गया।

प्रेम रूप की परिभाषा
ये कोई बता क्या पाया है
तेरे मेरे बीच जो पनपा
यही, कृष्ण ने समझाया है।
©युगेश




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Thursday, July 1, 2021

आँसू

तुम्हारी आँखों से जो छलके
वो आँसू थे
मेरी आँखों में जो सूख चुके थे
वो आँसू थे
दिल जब बिखर गया
और कुछ कह न पाया
आँखों से रिसकर बतलाया जिसने
वो आँसू थे
जब खुशी बड़ी हो गयी
और दुख जब बड़ा हो गया
पलकों से जो हर बार छलके
वो आँसू थे
कृष्ण ने
पानी परात बिन छुए
धोए जिनसे पाँव सुदामा के
वो आँसू थे
आँसू को परिभाषित कैसे करूँ
कैसे बतलाऊँ वो क्या हैं
जब कोई कुछ नहीं कहता
तो आँसू कहते हैं
वेदना, विश्वास, विनोद
वो अविरल बहते हैं
मानव जब महावीर बन
भगवान हो जाता है
पानी अपना उच्चतम स्तर
आँसू बन पाता है।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार 


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