Tuesday, March 21, 2017

माँ का प्रेम

प्रेम की परिभाषा
इतनी आसान कहाँ
उपमाएं कम पर जाएं
जो माँ की बात हो
अकूत,विस्तृत,अपरिसीम
चित्र-गूगल आभार 
ये शब्द कम पड़ जाएँ
जो ममता की बात हो
प्रेम कभी महसूस कर आता है
प्रेम कभी साथ जीकर आता है
उस प्रेम की क्या बात करूँ
जो जीवन देकर आता है
एक प्रतिबिम्ब सा बनता है
माँ की उन आँखों में
जो है भी और नहीं भी
पर जीता उसकी साँसों में
वेदना परस्पर प्रेम
दृश्य मनोहर वो होता है
जब उस रोती माँ के हाँथों में
एक नवजीवन जब रोता है
दृश्य वो विशाल
पर अब उसकी छोटी दुनिया होती है
उस नन्हे बालक के खुशियों में
वो खुशियां ढूंढा करती है
झंकृत करती जीवन उसका
अपने मन-वीणा के तारों से
जो और न समझे ,वो गुत्थी सुलझी
माँ पढ़ती उसके आँखों से
चित्र उकेरती है जो वो
छोटा सा उसका साम्रज्य है
वो रानी है आभास नहीं
पर नन्हा उसका राजकुमार है/
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Wednesday, February 22, 2017

आज फिर लिखने का ख्याल आया

कल यूँ ही गुलज़ार की नज़्में सुनने का मन हुआ।ये गुलज़ार के लेखन की जादूगरी ही है कि बेजान से शब्दों में जान फूँक दे।वे छोटी से छोटी बातों को इतने विस्तार से इतने करीने से कहते हैं कि दिल को छू जाती है।कल्पना शक्ति दौड़ने लगती है और अल्फ़ाज़ों के जुगुनू से जगमगा उठते है वे पन्ने जहाँ आपके कलम की स्याही पड़ती है।उस पर भी उनके बोलने का अंदाज़ दिल को छू जाता है,ऐसे में ख्याल आता है कुछ लिखने का,हालाँकि उनके जैसा क्या ही लिखूँगा पर कोशिश तो होती रहनी चाइए।शायद कुछ जुगनू हमारे पन्नों पर भी आ जाएँ.......


आज फिर लिखने का ख्याल आया
जाने क्यों फिर तेरा नाम आया
अल्मारी से मैंने वो पुराना प्रेम पत्र निकाला
हमारे प्रेम की तरह उसे भी अधूरा पाया
धूल शायद पड़ी थी उन खतों में
चित्र-गूगल आभार 
उजले गुज़िश्ता का हमने धुंधला मुस्तक़बिल पाया

बो दिए थे दिल की ज़मीन में यादें कई
अरसा हो गया न उसमे खाद न पानी डाला
आज देखा तो एक पौधा पाया
आज फिर जज़्बातों को जगा पाया

वो बागीचा जहाँ हमने कितना वक़्त बिताया
वो पगडंडी जो हमे पहचानने लगी थी
आज फिर हमने उन फूलों को निहारा
जायज़ है महक थी,पर तुझसा महकता न पाया

याद है जब हम बारिश में भींग रहे थे
तुम्हारी जुल्फों से रिश रहे थे वे शरारती बूँदें
और आकर टिक जाते थे तुम्हारे रुखसार पर
तुम्हारा चेहरा मानो कैनवास सा बना लिया था
तुम उन्हें अपने दुप्पटे से पोंछते रही और
मुझे उनके तुम्हे छूने का अन्दाज़ पसंद आया

जो बैठा रहता हूँ बालकनी में तो सोचता हूँ
जो आहट हो,उस बेगैरत गली को तकता हूँ
जानता हूँ फ़िज़ूल है,पर फिर भी इंतज़ार आया
अरसा हुआ सुकून को,न ही इत्मिनान आया

भूलना होता तो शायद भूल ही जाते
हालाँकि कोशिश-ए-पैहम हमने कम नहीं की
पर जब भी की तेरा मासूम सा चेहरा जेहन में आया
और हर बार हमने खुद को कोशिश-ए-नाकाम पाया
और बस यूँ ही आज फिर लिखने का ख्याल आया
जाने क्यूँ फिर तेरा नाम आया।
©युगेश
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Wednesday, February 15, 2017

युवा और गाँधी

मैं खोया था बैठा उदास
निज आ बैठे गाँधी सुभाष
इस मन कौतुहल और आँधी को
कैसे समझाऊं गाँधी को
शायद समझे वो महापुरुष
चेहरे पर थी मुस्कान दुरुस्त
सुभाष समझाओ युवा साथी को
हमने देखा भांति भांति को
याद है प्यारा खुदीराम
चित्र -गूगल आभार 
और अमर माँ को उसका प्रणाम
जो जलते इस यौवन में
रोष भरा जिसके क्रन्दन में
जो पथ न धूमिल होने देता है
लोहा तब तपकर कुंदन होता है
विकृतियाँ भरी धरातल पर
पर हमने खुद को सहज रखा
भारत माँ की भूमि को
अमर सपूतों ने सींचा
जो बातें तुमको भटकाती है
और चमक तुम्हे ललचाती है
याद रखो माँ की ख्वाईश
वो कितना तुमको चाहती है
जो विषम होती परिस्तिथी तो
ह्रदय तुम विशाल करो
जो हारे मन ठोकर से तो
किञ्चित और प्रयास करो
सुलझेंगे सारे अनसुलझे
नवचेतना से प्रहार करो
हमपर भले न सही
पर निज शक्ति पर विश्वास करो
सफलता असफलता को छोड़ो
करने दो लोगों को बातें
प्रयास वो पहली सीढ़ी है
वही मनुज कुछ कर जाते
तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा
बात सहजता से कर देखो
इतने हाँथ उठे थे
उम्मीद की लौ जलाकर तो देखो
प्रकाश सा फैला आँखों में
मैंने हाँथ बढ़ाकर देखा
मिलना हुआ जो उनसे
शायद सपनों का धोखा
ज्ञान हुआ तब जा मुझको
भ्रम का अब न कोई साया था
इस भ्रमित युवा मन में
नवचेतना का प्रवाह आया था/
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Wednesday, January 4, 2017

अलगाव

शाखों से पत्ते टूट गए
आँखों से दो मोती छूट गए
तुम हमसे हम तुमसे क्या रूठे
उधर तुम टूट गए
इधर हम टूट गए

दिलों में जज़्बात अब भी वही थे
रवानगी मोहब्बत की अब भी वही थी
वहम का झोंका फ़िज़ा में क्या फैला
झूठ को सच तुम मान गए
इधर भरोसा हम हार गए

दिल की कहानी को बयां करते करते
हम टूट गए तुमसे वफ़ा करते करते
शक का बीज पता नहीं कब बोया
कभी अपनी सुबक से तुम सींच गए
कभी अपने आंशुओं से हम सींच गए

वारफ्तगी मेरे इस दिल की
शोख़ आँखों की मेहकशी की
अब कभी कोई बातें नहीं होती
अरसा हो गया,मोहब्बत मुझे जताये हुए
और तेरा मुझसे नज़र चुराये हुए

एक लंबी ख़ामोशी है हमारे बीच
चंद फैसलों ने फासला तय कर दीया
बातें बहुत सी हैं पर बयाँ नहीं होती
कभी एक-दूजे को अनदेखा हम कर गए
कभी निकलते जज़्बातों को चंद हम कर गए।
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Wednesday, November 23, 2016

जनरल बोगी

कभी कभी दुःख में भी विनोद होता है,जरुरत है उसे ढूंढने की।कैसे कभी कभी हम अपनी गलतियों पर भी हंसने लगते हैं।शायद व्यंग, हास्य दुःख से ही प्रोत्शाहित होते हैं।बहुत सी चीजें जहाँ आपकी मस्सकत,दिक्कत से हास्य उत्पन्न होता है उनमे से एक है ट्रैन की जनरल बोगी की सफर,यह और भी खास हो जाए जब आप बिहार में सफर कर रहे हों।मैंने हमेशा माना है भोजपुरी काफी प्रेम और भोलेपन की भाषा है ऐसे में सच्चा विनोद भोलेपन में ही मिलता है तो यह कविता मैंने भोजपुरी में ही लिखना उचित समझा.......

चल गैनी स्टेशन पर
ट्रैन देलस धोका
चार घंटे लेट रहनी
पच गईल लिट्टी चोखा।1।

स्टेशन रहले आरा के
भीड़ रहल भारी
आयिल ट्रैन,भाग मर्दे
चित्र-गूगल आभार 
कहीं छूट न जाई गाड़ी।2।

रुमाल के कमाल देखा
होईल न कोई चूक
फेक ओकरा के सीट बुक करनी
अइसन निशाना अचूक।3।

सीट रहनी जनरल के
किस्मत हम्मर फुटल बा
बोझा कपार पर धर ओ मर्दे
ओइजे आदमी बैठल बा।4।

भीड़ एकदम ठसम-ठस
फर्स भी भईल बैठे के सीट
तबले रउवा गाना बजौले
लगावे लू जब लिपस्टिक।5।

इतना में आपातकालीन खिड़की से
दू गो बोरा अइले,हम कहनि ई का बा
कह देलस उ,एकरा में चाउर
और ओकरा में घर के गेहुँ बा।6।

माथा हम्मर चकरा गईल
और उ कहनी भैया एगो रिक्वेस्ट बा
तनी हटा न खिड़किया से
एइजे से हमरो के घुसे के बा।7।

एक के सीट में दू
और चार के सीट में आठ हो
Maximum haulage capacity के
Calculation ही बेकार हो।8।

अब का कहीं आपन journey
खुबे दिक्कत झेलनी
पर सुक्र हो भगवन के
सही सलामत घर पहुंचनी।9।
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Sunday, October 30, 2016

पुल और प्रेम

"तू किसी रेल सी गुजरती है 
 मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।"
दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियाँ है,बड़े ही आसान शब्दों में प्रेम की बारीकियों को रखा गया है।आपने फिल्म मसान में इस गाने को सुना होगा।अगर इन पंक्तियों को ध्यान से पढ़ा जाये तो आपको एक पुल और प्रेम में कई समानताएं मिलेंगी।जैसे दो छोर को जोड़ता है एक पुल ठीक उसी प्रकार ईश्वर की दो भिन्न कृति दो छोर यानि स्त्री और पुरुष को जोड़ता है प्रेम।प्रेम जो निरंतर होता है,असीम होता है,खूबसूरत होता है और बेहद होता है........


पुल और प्रेम
भावों के पुलिन्दों से बाँध कर रखा था
चित्र-गूगल आभार 
प्यार का वो पूल हमारा
जिसके एक छोर पर तुम थी
और दूसरे छोर पर मैं
जैसे जोड़ती है दो किनारों को एक पूल
वैसे हमें भी जोड़ रखा था
तुम्हारी प्यारी आँखों को तकती मेरी आँखें
तुम्हे आग़ोश में लिए मेरी बाहें
जब गुजरती है खूबसूरत वादियों से
अच्छा लगता है
इन ख़ामोशियों में तुमसे जुड़ना
अच्छा लगता है
जो बत्तियों से सजा दिए जाते हैं
किसी उत्सव में पूल कई
वैसे तुम संग सजना अच्छा लगता है
हर रंग में तेरा जच्चना अच्छा लगता है
जैसे थरथराती है भार से पुल
वैसे प्यार पर समय की मार भी
अच्छा लगता है
पर एक फर्क है
जिसे अनदेखा नही कर सकता
ये पुल दो छोर को बांधे हुए
चंद सालों का है या उस से आगे
पर ये जो प्यार है हमें जोड़े हुए
ये निरंतर है,असीम है
खूबसूरत है ,बेहद है
और ये पुल अच्छा लगता है
हमारा प्यार और भी अच्छा लगता है।
(c)युगेश


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Saturday, July 9, 2016

तू बला सी खूबसूरत है

तू बला सी खूबसूरत है
ऐसा लोग कहते हैं
कोई एक नही कहता
हर लोग कहते हैं।
तेरी खुबसुरुति की नुमाइंदगी
चित्र-गूगल आभार 
हर रोज करते हैं
जबसे सीरत देखी
थोडा और करते हैं।
तू उस मस्त बारिश की तरह है
जो हौले से बरसती है
जो भीगते हैं तो जिंदगी क्या है
महसूस करते हैं।
जो छिप जाती है तू
बादलों में उस बारिश की तरह
माफ़ करना पर हम तुम्हे
जरा मगरूर करते हैं।
तेरे आँखों की चमक
तेरे पायल की धमक
सच कहता हूँ
हमें मदहोस करते हैं।
थोड़ा अपना ख्याल रखना
चेहरे पर बस यही हाँ यही मुस्कान रखना
क्योंकि इसी मुस्कान पर हम जीते हैं
इसी मुस्कान पर हम मरते हैं।
और ऐसा बस मैं नही कहता
ऐसा हर लोग कहते हैं।
©युगेश
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