खबर जो भिजवाई तो भिजवाई कैसे
बिना कहे जतलाई तो जतलाई कैसे।
बदल गया चंद लम्हों में ये गुलिस्तां
जिस हवा से उजड़ा चमन वो आई कैसे।
देख कर भी सब कुछ अनदेखा कर दिया
पट्टी इतने अच्छे से आँखों पर बंधवाई कैसे।
जवाबदेही चाहिए तुम्हें हर शख्स से
ज़िम्मेदारियाँ अपनी बखूभी भुलाई कैसे।
साख के फूल हो उससे सवाल करते हो
कभी जाना तुम्हें वो सींच पायी कैसे।
बातें बड़ी करके मुकर जाना कमाल है
याददाश्त कमज़ोर की जुगत लगाई कैसे।
देखते जिस चश्मे से तुम बखूभी ज़माना
क्यूँ, हटा भी न पाई तुमने वो काई कैसे।
जब उतार न सका कर्ज़ माँ बाप का
तुमने गलतियाँ गिनाईं तो गिनाईं कैसे।
राह पकड़ी तो वो पगडंडी बने रहे
मंज़िल आई तो औकात दिखाई कैसे।
सही को गलत कहके खुद को सही बताना
नायाब ये काबिलियत लाई कैसे।
जरूरत पड़ी तो थामी थी उँगली उनकी
आन पड़ी जरूरत उनको, बखूभी झुठलाई कैसे।
©युगेश
चित्र - गूगल आभार |