तलब नहीं मुझे
तेरी ताबीर करनी है
लकीरें कुछ
हाथों में तेरे,कुछ मेरे हैं
जोड़कर इन्हें तक़दीर करनी है।
उसे रूवासा होना
अच्छा नहीं लगता
जिसे देखकर मुस्कुरा दे
वो तस्वीर बननी है।
सुना है एक से स्वाद से
वो ऊब सी जाती है
जो पसंद हो उसे
वो तासीर बननी है।
सोने, चाँदी, जवाहरात
मन किसका भरता है
जिसे पाकर उसे
कोई ख्वाहिश न रहे
वो जागीर बननी है।
नाज़ुक सी कली है
हौले से थामना
गुमशुम हो जाए
न ऐसी तकसीर करनी है।
मिसालें दी जाएँ
हम दोनों की जानाँ
कहानी ऐसी
बेनज़ीर बननी है।
©युगेश
तकसीर - चूक
बेनज़ीर - बेमिशाल
चित्र - गूगल आभार |
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