मुझे नहीं कुछ आसान चाहिए
ला सके तो ला, तूफान चाहिए।
हौंसला देख ठहर जाएगा तू
मैं परवाज़ हूँ, आसमान चाहिए।
इन गीदड़-भभकियों से डरता है कौन
शेर हूँ मुझे बस दहाड़ चाहिए।
मिलूँगा निहत्था तुझसे, गुरुर है
जो तोड़ सके १०० तलवार चाहिए।
भीतर जो मेरे है क्या बताऊँ
मुझे तेरे अंदर थोड़ा पानी चाहिए।
जबीं पर पड़ी सिलवटें, ईमान बोलते हैं
तुझे रास न आएगी, लिख ले, स्याही चाहिए।
शादाब है अब भी कोहसार मेरा
तल्खियाँ नहीं, ख़ारज़ारों की सौगात चाहिए।
तेरी मक्कारियों को नज़रअंदाज़ करते हैं
थोड़े सभ्य हैं, वरना तुझे औकात चाहिए।
असरार मेरे जुनून का तुझे क्या बताऊँ
मैं पानी हूँ, मुझे बस बहाव चाहिए।
©युगेश
परवाज़ - उड़नेवाला
जबीं - ललाट
शादाब - हरा-भरा
कोहसार - पहाड़
ख़ारज़ारों - काँटों भारी ज़मीन
असरार - राज़
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