मंज़िल मिली किनारा न मिला
मिला साथ लोगों का तुम्हारा न मिला
दरख़्त से गिरे पत्ते की तरह
जो उड़ना चाहा हवाओं का सहारा न मिला
जुम्बिश वस्ल की तुम क्या जानो
जब चाहा तब न मिला
जब न चाहा तब जा कर मिला
राह चला जो तुमने दिखाई
कभी ठोकर खा कर चला
कभी ठुकरा कर चला
मंसूब करूँ अपनी तरक्की तेरे नाम
जो भी गम दिए तूने
सारे के सारे,जज़्ब कर चला
आई जो मंज़िल पास मेरे
पीछे मुड़ तुझे देखकर चला
रंजिश न रह जाए कोई
इसलिए यारों जो मैं चला
दुआ सलाम करता चला।
©युगेश
मंज़िल मिली किनारा न मिला(YOUTUBE LINK)
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मिला साथ लोगों का तुम्हारा न मिला
चित्र - गूगल आभार |
जो उड़ना चाहा हवाओं का सहारा न मिला
जुम्बिश वस्ल की तुम क्या जानो
जब चाहा तब न मिला
जब न चाहा तब जा कर मिला
राह चला जो तुमने दिखाई
कभी ठोकर खा कर चला
कभी ठुकरा कर चला
मंसूब करूँ अपनी तरक्की तेरे नाम
जो भी गम दिए तूने
सारे के सारे,जज़्ब कर चला
आई जो मंज़िल पास मेरे
पीछे मुड़ तुझे देखकर चला
रंजिश न रह जाए कोई
इसलिए यारों जो मैं चला
दुआ सलाम करता चला।
©युगेश
मंज़िल मिली किनारा न मिला(YOUTUBE LINK)
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