ये तिलिस्म अपना तोड़ दे
क्या कर सकेगा छोड़ दे
ये रूह टूटी ही सही
मैं जोड़ लूंगा,छोड़ दे।
मैं कर्ण सा बलवान हूँ
बिखरा हुआ पर अभिमान हूँ
जिसने दे दिए कवच और कुंडल
बिखरा सही पर दयावान हूँ।
हुंकार की आधार पर
तेरे खोकले अहँकार पर
जा ढूँढ़ ले डरते हैं जो
मैं जीता अपने अभिमान पर।
ये लोक नीति ही नहीं
ये शोक नीति ही नहीं
जा पूछ ले जिससे भी हो
विनती किसी से की नहीं।
उपकार के उस हर्ज पर
रख हाँथ मेरे नब्ज़ पर
उभरूँगा फिर तू देख ले
समुद्र-मंथन के तर्ज पर।
©युगेश
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क्या कर सकेगा छोड़ दे
ये रूह टूटी ही सही
मैं जोड़ लूंगा,छोड़ दे।
मैं कर्ण सा बलवान हूँ
बिखरा हुआ पर अभिमान हूँ
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चित्र-गूगल आभार |
बिखरा सही पर दयावान हूँ।
हुंकार की आधार पर
तेरे खोकले अहँकार पर
जा ढूँढ़ ले डरते हैं जो
मैं जीता अपने अभिमान पर।
ये लोक नीति ही नहीं
ये शोक नीति ही नहीं
जा पूछ ले जिससे भी हो
विनती किसी से की नहीं।
उपकार के उस हर्ज पर
रख हाँथ मेरे नब्ज़ पर
उभरूँगा फिर तू देख ले
समुद्र-मंथन के तर्ज पर।
©युगेश
Kaafi Sundar kavita hai
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