Saturday, November 2, 2024

घर का अलंकार

तुझको पाकर मैंने पाया
पूरा ये संसार
गुड़िया तेरे होने से
हर सपना साकार
तेरे कु कु का का से
मेरा घर गुलज़ार
बड़ी बड़ी आँखों से
तू जो देखे बारंबार
पितृ हृदय की कल्पित वीणा में
बजते कितने तार
तू जो मोती भर ले आँखों में
मैं तुझको लू पुचकार
तेरे रून झुन से हो जाता 
घर मेरा झनकार
तेरे आने से मैंने देखा
कुदरत का चमत्कार
तेरे माथे को चूम चूम
मैं थका नहीं एक बार
तेरे पीछे भाग भाग
अब बचा नहीं इतवार
निहारूँ तुझको मैं तो जीभर
तू दाता का उपकार
तू मेरी मिट्टी है बिटिया
मैं तेरा कुम्हार
मेरी कड़वी बातों को भी
तू करना अंगीकार
लक्ष्मी बन तू आयी गुड़िया
बन इस घर का अलंकार।
©युगेश



Rate this posting:
{[['']]}

Monday, September 9, 2024

तू जो आएगा

जब आपके जीवन में नवांकुर फूटने की आहट होती है तो सब कुछ ठहरा सा मालूम पड़ता है। वो भाव वो एहसास बड़े ही नायाब होते हैं। जैसे भगवान को किसी ने देखा नहीं लेकिन वो हैं इसका एहसास सभी को बराबर रहता है। ठीक उसी तरह माँ के कोख में एक नन्हें फरिश्ते का होना जो सामने न होकर भी अपने होने का एहसास देता है। सबकुछ बिल्कुल जादू सा लगता है। ऐसे में एक पिता को अपने विचारों को बयाँ करना इतना आसान कहाँ होता है.......

तू जो आएगा
तो तुझे बताऊँगा
तुझे गोद में लेकर
मैं खूब खिलखिलाऊँगा
कैसे कट जाती थी रातें
तेरी बात करते करते
तेरे आने की सुगबुगाहट आई
जैसे कोई ख्वाब गढ़ते-गढ़ते
तुझे कैसे बताऊँ तेरे माँ
के चेहरे की चमक
उसके आँखों में कहकशां
उसके पैरों में धनक
तेरे होने का जब पता चला
मैं मानों मीलों-मील चला
एक बेटे से पिता हो जाना
मैंने बाप होकर एक बाप को जाना
तू एक ख्वाब है
तुझे महसूस करता हूँ
तू एक सच्चाई है
तुझे आभास करता हूँ
तुझे छू नहीं सकता
तो मैं अपनी हाथे फेरता हूँ
मैं तुझे तेरी माँ के
एहसास से जीता हूँ
तेरी धड़कन को कोख से सुनना
मैंने जाना सच्चे जादू का होना
जब पहली बार clinic में
तुम्हारी धड़कन सुनी थी
ये दुनिया जो थी
क्या ये वही थी
मैं रोक न सका
कुछ आँसू डब डबाए थे
मैंने फलक के सारे तारे
तेरे माँ के आँचल में पाए थे
और तुझे सच बताऊँ
अब सब्र नहीं होता
पर जो होता है
वो अच्छे के लिए होता
थोड़ी तकलीफें आती हैं आएँगी
पर पता है वो सब झेल जाएगी
तुझे तेरी दादी, नाना-नानी
सब बाँहें फैंलाये तक रहे हैं
दादा फरिश्ते बन सब देख रहे हैं
तुझे एहसास नहीं तुझे
कितना प्यार मिलेगा
तू जब आएगा बाहों में तो
मेरा पूरा परिवार खिलेगा
तू बस आ जा तुझे
बहुत से किस्से सुनाऊँगा
तुझे गोद में लेकर
मैं खूब खिलखिलाऊँगा।
©युगेश
                                              
चित्र - गूगल आभार 

Rate this posting:
{[['']]}

साँसे ये मेरी साँसे करती हैं बातें सिर्फ तेरी

साँसे ये मेरी साँसे करती हैं बातें सिर्फ तेरी
आँखें ये मेरी आँखें देखे हैं सपने सिर्फ तेरी

तू ख्वाब है , ताबीर है
तू है मेरा क्या बता। X 2

धड़कन ये मेरी धड़कन छेड़े हैं सरगम सिर्फ तेरी
हलचल सीने में हलचल आते हैं सुनकर आहटें तेरी

मैं रात हूँ तू दिन मेरा
तू ही मेरी हर सुबहा। X 2

राहत मिलती है राहत पाकर सोहबत सिर्फ तेरी
उल्फत ये कैसी उल्फत हैं ये रहमत सिर्फ तेरी

तू हीर है तू सब मेरा
तू हीं मेरा हमनवा। X 2

बहका मैं तो हूँ बहका सुनकर बातें सिर्फ तेरी
खोया मैं तो हूँ खोया जाने कबसे जुल्फों में तेरी

मैं ढूँढता हूँ रब मेरा
तू ही मेरा रहनुमा। X 2

साँसे ये मेरी साँसे करती हैं बातें सिर्फ तेरी
आँखें ये मेरी आँखें देखे हैं सपने सिर्फ तेरी

तू ख्वाब है , ताबीर है
तू है मेरा क्या बता। X 2
©युगेश 

चित्र - गूगल आभार 


Rate this posting:
{[['']]}

Saturday, November 18, 2023

सन्नाटा

कितना आसान है चले जाना
और लौटना उतना ही मुश्किल
फूल पर भ्रमर का आना ज्यादा सुखद है
या उसका चला जाना ज्यादा दुःखद
उन्माद का त्रासदी हो जाना
और उसका वापस लौट कर
फिर कभी उस फूल पर न आना
क्या ? इसलिए फिर झड़ जाते हैं फूल
सवाल उन गिरे हुए फूलों से करना
इतना आसान नहीं उनका खिलना
आसान है उनका शाख से चले जाना
भ्रमर आने का शोर करता है
जाने की कोई आवाज़ नहीं होती
होता है तो सिर्फ सन्नाटा ।
©युगेश  

चित्र - गूगल आभार


Rate this posting:
{[['']]}

Tuesday, May 16, 2023

प्रथम वर्ष प्रेम का

प्रथम वर्ष प्रेम का
तेरे मेरे गठजोड़ का
जैसे कोई मधुर राग
और जल्दी बीते फाग।

कभी दिखे चितचोर
और कभी दिखे बरजोर
कभी हाथो में ले हाथ
कभी करते दो दो हाथ।

दिल की बातें आँखों से
आँखें करती इशारे
अकुलाई कभी घबराई सी
कभी मन में फूटते शरारे।

तवे से निकली रोटी
थोड़ी पकी थोड़ी कच्ची
जैसे अल्हड़ हमारा प्यार
और समय लाए निखार।

धीरे मिटे मन की झिझक
आँखों में एक-दूजे की ललक
कैनवास को रंगता चित्रकार
जिसे रंग भरता तेरा मेरा प्यार।
©युगेश


Rate this posting:
{[['']]}

Sunday, July 10, 2022

खबर जो भिजवाई तो भिजवाई कैसे

खबर जो भिजवाई तो भिजवाई कैसे
बिना कहे जतलाई तो जतलाई कैसे।

बदल गया चंद लम्हों में ये गुलिस्तां
जिस हवा से उजड़ा चमन वो आई कैसे।

देख कर भी सब कुछ अनदेखा कर दिया
पट्टी इतने अच्छे से आँखों पर बंधवाई कैसे।

जवाबदेही चाहिए तुम्हें हर शख्स से
ज़िम्मेदारियाँ अपनी बखूभी भुलाई कैसे।

साख के फूल हो उससे सवाल करते हो
कभी जाना तुम्हें वो सींच पायी कैसे।

बातें बड़ी करके मुकर जाना कमाल है
याददाश्त कमज़ोर की जुगत लगाई कैसे।

देखते जिस चश्मे से तुम बखूभी ज़माना
क्यूँ, हटा भी न पाई तुमने वो काई कैसे।

जब उतार न सका कर्ज़ माँ बाप का
तुमने गलतियाँ गिनाईं तो गिनाईं कैसे।

राह पकड़ी तो वो पगडंडी बने रहे
मंज़िल आई तो औकात दिखाई कैसे।

सही को गलत कहके खुद को सही बताना
नायाब ये काबिलियत लाई कैसे।

जरूरत पड़ी तो थामी थी उँगली उनकी
आन पड़ी जरूरत उनको, बखूभी झुठलाई कैसे।
©युगेश

चित्र - गूगल आभार


Rate this posting:
{[['']]}

Wednesday, July 6, 2022

मैं और टमाटर

मैं और टमाटर अक्सर ये बातें करते हैं
टमाटर देशी होती तो स्वाद कैसा होता
उसकी चटनी बनती तो कैसा होता
चटनी में थोड़ी मिर्ची पिसी जाती
तुम थोड़ी और सस्ती होती
तो मेरी थैली पूरी भर जाती
स्वाद के साथ मैंने बजट भी देखा है
मुझे तुम्हारा बीज पसंद नहीं
सो उन्हें फुलवारी में फेंका है
स्वाद और भी दूना हो जाता है
जब जीरे का तड़का पड़ जाता है
मेरे देश में हज़ारों लोगों का गला
बस रोटी चटनी से तर जाता है।
©युगेश 

चित्र - गूगल आभार 

Rate this posting:
{[['']]}