Tuesday, December 15, 2015

भूकम्प

कुछ दिन पहले हिंदी पखवाड़ा के अवसर पर ऑफिस में काव्य-लेखन प्रतियोगिता हुई/ हमे एक चित्र दी गयी जिसमे भूकम्प का दृश्य था और हमें एक घंटे में उस पर एक कविता लिखनी थी /कलम को चलने का बहाना मिल गया था/पर कुछ लिखने से पहले जरुरी है उसको जीना /भूकम्प या कोई भी आपदा कुछ ही पल में ऐसा कोहराम मचाती है जिसके चपेट में शहर के शहर बर्बाद हो जाते हैं /नाजाने कितने परिवार बिखर जाते हैं ......


अहो ! देखो ये क्या हो गया
कुछ क्षण पहले तो सब ठीक था
अचानक ये क्या हो गया
प्रकृति का प्रकोप कहूँ या
मानव जनित त्रासदी
जो भी हो पर क्षण भर में
ही सबकुछ बर्बाद हो गया /

कल ही जिद की थी
सोनू ने पिता से साथ
कहीं घूमने को जाने की
सुबह हुई नहीं की
सबकुछ खाक हो गया
और छोटा सा परिवार
बस यूँ ही बर्बाद हो गया /

अजब था प्रकृति का खेल भी
कोई भेदभाव भी नहीं हुआ
हिन्दू हो या मुस्लमान
बराबर सब पर वार किया
टूटी इमारतें,बिखरे थे परिवार
प्रकृति लेकर आई थी
कुछ ऐसा शैलाब /

भूकम्प भी साथ मानों
एक संदेश लेकर आया था
बस कर ऐ मनुज
वह भलिभांति कह पाया था
सुचना अचूक थी
चारों ओर कुख थी
बिखर चूका था जीवन आधार
इस प्रकार प्रकृति ने जताया था आभार /

सीख़ बहुत बड़ी थी
और सीख़ की कीमत भी
पर एक खूबसूरती भी थी
इस विषम परिदृश्य में
अपनों का पता न था
पर गैरों को संभाल रहे थे
मानव तो हम पहले भी थे
अब इंसान नज़र आ रहे थे /                                  
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3 comments:

  1. दुखद परिदृश्य की बहुत सुन्दर कविता है

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  2. सुन्दर कविता युगेश जी

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